कोरोना: सरकार की विफ़लता, विपक्ष की असहयोगात्मकता और नकारात्मकता, बेबस जनता की विवशता का निकृष्टतम एवं घोर पीड़ादायक उदाहरण

कुछ देशों ने भारत से Hydroxychloroquine माँग ली , फिर देश के होनहार वैज्ञानिकों ने Vaccine बना ली , अनेक देशों ने Vaccine भी माँग ली , भारी मात्रा में दवाईयाँ , Vaccine विदेशों को दे दी गईं , देश में भी कोरोना का प्रभाव लगातार कम होता चला गया , विदेशों में भारत के "Covid Fighting Model" की तारीफ़ होने लगी , बस !!! इतना तो काफ़ी था " साहब " के आत्ममुग्ध होने के लिये। " साहब " के लिये तो ये एक और सुनहरा अवसर था " मैं , " मैनें " करने और स्वयं की पीठ थपथपानेका। दरअसल " साहब ", उनकी सरकार के नुमाइन्दे और तथाकथित सलाहकार , कोरोना की दूसरी लहर का सही अंदाज़ा ही नहीं लगा पाए , और ज़ाहिर है जब अंदाज़ा ही नहीं लगा पाए तो कैसे रोकते और कैसे लड़ते। Vaccine बनाकर , दुनियां को बांटकर स्वयं की पीठ थपथपाते रहे , साथ ही ये मानकर निश्चिन्त हो गए कि "Vaccine बना ली है मतलब कोरोना से जंग जीत ली है। " बस ...