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कोरोना गया ही नहीं था, या हमारी लापरवाही इसे मेहमान बनाकर वापस ले आई?

प्रधानमन्त्रीजी ने थालियाँ - तालियाँ बजवाईं लेकिन लोगों के दिमाग़ की घंटियाँ नहीं बजीं . प्रधानमन्त्रीजी ने दिये - मोमबत्ती जलवाए लेकिन लोगों के दिमाग़ की बत्तियाँ नहीं जलीं . कोरोना की रफ़्तार कुछ कम क्या हुई , लोगों ने इसे अपनी जीत और कोरोना की हार के साथ - साथ ये भी समझ लिया कि अब ये हमेशा - हमेशा के लिये ख़त्म हो गया . बाज़ारों , शादी - ब्याहों , पर्यटन स्थलों में बेतरतीब भीड़ लगने लगी . उत्सव - त्यौहारों , मन्दिर - मस्ज़िद - गिरिजा - गुरुद्वारों समेत अन्य तमाम धार्मिक स्थलों में श्रद्धालू जमने लगे . Restaurants- होटलों - मदिरालयों में महफ़िलें जमने लगीं - रौनकें बढ़ने लगीं . धीरे - धीरे दूरियाँ घटने लगीं , पाबंदियाँ हटने लगीं . और फिर वही हुआ जिसका डर था . दुश्मन कोरोना घात लगाए बैठा था और मौक़ा मिलते ही उसने पुनः वार कर दिया . देश अभी कोरोना के पहले भयावह वार से उपजे "Lockdown" के भीषण दंश से ठीक से उबर भी न पाया था कि एक और पलटवार . कहावत है कि ' व...