हाहाकार






 

आधा देश जलमग्न हो चुका है. भयावह बाढ़ से त्रस्त आम जनता त्राहिमाम् कर रही है. चारों ओर प्रकृति ने हाहाकर मचा रखा है और हर साल मचाती है. समय-समय पर इन्सान को चेतावनी भी देती हैलेकिन प्रकृति से खिलवाड़ करने वाले हैं कि समझने को तैयार ही नहीं.

पेड़ों-जंगलों को काटना, पहाड़ों को काटना-तोड़ना, सीमेंट-गारे के जंगल बनाना जारी है.

हर साल आधा देश भयावह बाढ़ की त्रासदी झेलता है तो आधा भीषण सूखे की मार. उस पर तूफ़ान, आँधी, ओलावृष्टि, बे-मौसम बरसात, टिड्डी-कीट-पतंगे-इल्ली के प्रकोप ने देश के अन्नदाता को बर्बाद करने के साथ ही आम जनता को भी बुरी तरह त्रस्त कर रखा है.

कभी सूख़े, कभी बे-मौसम बरसात, कभी बाढ़ या अतिवृष्टि तो कभी ओलावृष्टि क्या "देश के अन्नदाता" और आम जनता की क़िस्मत में हर परिस्थिति में केवल रोना, बिलखना, तड़पना, त्रस्त होना ही लिखा है?

i आख़िरकार मानसून के आगमन के पूर्व ही नदियों, तालाबों, जलाशयों, कुओं, बावड़ियों का सफ़ाई एवं गहरीकरण अभियान युद्धस्तर पर क्यों नहीं चलाया जाता?

ii हर वर्ष भीषण बाढ़ से कोहराम मचाने वाली नदियों और उनकी चपेट में आने वाले क्षेत्रों में जलनिकासी, जलसंवर्द्धन-जलसंरक्षण, बिजली निर्माण, सिंचाई परियोजनाओं की समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की जाती?

iii प्रत्येक राज्य में नदियों के एकीकरण अथवा उन्हें जोड़ने हेतु मास्टर प्लान क्यों नहीं बनाया जाता ताकि पॉवर प्लाण्ट्स लगाए जा सकें, सिंचाई की समुचित व्यवस्था की जा सके, पेयजल संग्रहण किया जा सके?

iv हर वर्ष सूखे की चपेट में आने वाले क्षेत्रों में नये तालाबों, कूओं, बावड़ियों, जलाशयों-टंकियों इत्यादि का निर्माण क्यों नहीं कराया जाता?

v हर वर्ष सूखे की मार झेलने वाले क्षेत्रों से गन्ने की खेती हटाकर अतिवृष्टि वाले क्षेत्रों में स्थान्तरित क्यों नहीं की जाती?

देश की जनता अपने परिवार को तड़पता न देख पाने की स्थिति और बदहाली-लाचारी के चलते अकाल काल कलवित हो रही है.

ये समस्याएँ हर साल विकराल रूप धारण करके आती हैं लेकिन कुम्भकर्णी नीन्द में सोई हुई राज्य और केन्द्र सरकारों के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती.

यदि विरोध और स्वार्थ की राजनीति को त्यागकर विपक्ष द्वारा अटलजी द्वारा प्रस्तावित देश की नदियों के एकीकरण की परियोजना को मान लिया गया होता तो देश में:

१. कभी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न नहीं होती.

२. सूखे की स्थिति उत्पन्न नहीं होती.

३. पेयजल की कमी की स्थिति उत्पन्न नहीं होती.

४. सिंचाई जल की कमी की स्थिति उत्पन्न नहीं होती.

५. बड़े पैमाने पर Power Plant लगते, जिससे बिजली की समस्या उत्पन्न नहीं होती.

६. हर साल खाद्यान्न, अनाज एवम् अन्य फसलों की भरपूर पैदावार होती.

७. भरपूर वन सम्पदा होती.

८. भरपूर खनिज सम्पदा होती.

९. पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता

और

१०. रोज़गार के सुअवसर बढ़ते

केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच तालमेल-वार्तालाप की कमी, राजनेताओं के आपसी द्वेष का खामियाज़ा निर्दोष जनता और यहाँ तक कि निरीह पशु-पक्षियों तक को भुगतना पड़ता है.

लेकिन कोई फ़ायदा नहीं. लोग मरते हैं तो मरते रहें, निरीह पशु-पक्षी तड़प-तड़प कर दम तोड़ते हैं तो तोड़ते रहें, बेरहम सरकारों और सत्ता के नशे में चूर राजनेताओं को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला....

 

शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे 

०९९२०४ ००११४ ०९९८७७ ७००८०

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