आख़िर क्यों जाना है मुसलमानों को रास-गरबा-डाण्डिया में?




 

                  आख़िर क्यों जाना है मुसलमानों को रास-गरबा-डाण्डिया में?

विगत कुछ सालों से लगातार जैसा होता आ रहा है, इस साल भी ठीक वैसा ही हुआ. नवरात्रि महोत्सव आते ही साज़िशन कुछ लोग:

धोख़ा देकर,
झूठ बोलकर,
पहचान छुपाकर,
ग़लत पहचान बताकर रास-गरबा-डाण्डिया में घुस आए, पकड़े जाने पर उन्हें मारा-पीटा गया, पुलिस के हवाले कर दिया गया. बस फिर क्या था, इतना तो काफ़ी था तथाकथित Liberals और Seculars के बवाल मचाने के लिये. तो निकल आए बिलों से बाहर ये तथाकथित Liberals, Seculars और लगे गंगा-जमुनी तहज़ीब, भाईचारे की दुहाई देने. देश में असहिष्णुता, अराजकता, असामाजिकता का वातावरण बताकर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की ये घिनौनी साज़िश २०१४ में सत्ता परिवर्तन के साथ ही शुरु हो गई थी, जबकि ऐसा कुछ है नहीं. ५७ मुस्लिम देश होने के बावजूद विश्व भर से सारे मुस्लिम शरणार्थी भारत में ही क्यों शरण लेते हैं? आख़िर क्यों मुस्लिमों के लिये भारत ही दुनियाँ भर में सबसे अधिक सुरक्षित देश माना जाता है? ये सवाल पूछने पर तमाम स्वयम्भू Liberals, Seculars निरुत्तर होकर बगलें झाँकने लगते हैं.

तो गंगा-जमुनी तहज़ीब और भाईचारे का हवाला देकर, रास-डाण्डिया-गरबा में मुसलमानों को शामिल किये जाने की पुरज़ोर वक़ालत करने वाले इन स्वयम्भू Liberals, Seculars से अब कुछ बुनियादी सवाल हो ही जाएँ, आख़िरकार मुसलमान:              
 
कांवड़ यात्रा करने क्यों नहीं आते?
रक्षाबन्धन पर राखी बँधवाने क्यों नहीं आते?
गणेश उत्सव पर पूजा-अर्चना करने क्यों नहीं आते?
गीता-रामायण-सुन्दरकाण्ड का पठन क्यों नहीं करते?
नागपंचमी पर नाग देवता की पूजा करने क्यों नहीं आते?
मकर संक्रान्ति-छठ पर सूर्य देवता को अर्ध्य क्यों नहीं चढ़ाते?
जन्माष्टमी पर भगवान् श्रीकृष्ण को भोग लगाने क्यों नहीं आते?
गुडी पाडवा-हिन्दू नववर्ष पर हर घर भगवा फहराने क्यों नहीं आते?
दशहरे पर रामलीला करने और तत्पश्चात् रावण दहन करने क्यों नहीं आते?
राम नवमी पर रामायण का पाठ करने और प्रभु श्रीराम माता जानकी की आराधना करने क्यों नहीं आते?
और इन सबसे बढ़कर एक और बुनियादी तथा सबसे महत्वपूर्ण सवाल: रास-गरबा-डाण्डिया में अपनी बहन-बेटियों को भी लेकर क्यों नहीं आते या उन्हें भी खेलने की इजाज़त क्यों नहीं देते?

चूड़ी,
पूजा,
बिन्दी,
तिलक,
प्रसाद,
सिन्दूर,
आरती,
यहाँ तक कि
योग
सूर्य नमस्कार की इजाज़त तुम्हारा धर्म देता नहीं, लेकिन गरबा-डाण्डिया खेलने की इजाज़त देता है, क्यों और कैसे?

हमारे यहाँ तो पूरे ३६५ दिन पर्व-उत्सव होते हैं. तो आओ:
तिलक लगाओगे?
प्रसाद ग्रहण करोगे?
लाल कपड़ा बाँधोगे?
पूजा-अर्चना-आरती करोगे?
मैं जानता हूँ, कभी नहीं.

लेकिन तुम्हें केवल गरबा-डाण्डिया खेलना है और उसमें भी अपने घर की बहन-बेटियों को शामिल नहीं करना है. 

वाह रे दोगलों!!

ये समझ लो, रास-गरबा-डाण्डिया भी राधा-कृष्ण और माता की भक्ति-आराधना है, कोई खेल नहीं. ये सनातन धर्म का बड़ा उत्सव, महोत्सव है.

और कान खोलकर सुन लो तथाकथित, स्वयम्भू लिबरलों-सेक्युलरों, इस देश की:

एकता-अखण्डता,
भाईचारे की भावना,
गंगा-जमुनी तहज़ीब तभी सुरक्षित और अक्षुण्ण रहेगी जब एक-दूसरे के धर्मों का आदर-सम्मान करते हुए, अपने धर्म का पूर्ण परिपालन किया जाएगा न कि:

दिखावों,
ढकोसलों,
आडम्बरों के ज़रिये एक-दूसरे की:

धार्मिक परम्पराओं,
संस्कृति-सभ्यताओं में ज़बर्दस्ती सम्मिलित होकर....

शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे,
०९९२०४ ००११४/०९९८७७ ७००८०

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