आख़िर किसी समुदाय को दलित क्यों कहा जाता है?

 


आख़िर किसी समुदाय को दलित क्यों कहा जाता है
?

 

वो समुदाय:

मैला ढोता है,

मैला साफ़ करता है,

मज़दूरी-हम्माली करता है,

गटर-नालियाँ साफ़ करता है,

कचरा उठाता और साफ़ करता है,

सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर झाड़ू लगाता है,

यानी कुल मिलाकर समाज से गन्दगी दूर कर उसे साफ़-सुथरा करता है, स्वच्छता लाता है,

तो फिर वो दलित क्यों कहलाता है?

 

आख़िर क्यों किसी समाज को सरकारों, नेताओं और यहाँ तक कि मीडिया द्वारा भी दलित कहकर उसे बार-बार:

 

पिछड़ा,

निःशक्त,

कमज़ोर,

असहाय,

दबा-कुचला,

निर्बल-दुर्बल होने का आभास-एहसास कराया जाता है? जबकि असल में तो वो सामाजिक, आर्थिक और यहाँ तक की राजनैतिक व्यवस्था-संरचना-ढाँचे की रीढ़ की हड्डी है, तभी तो चुनाव महोत्सव में बड़े से बड़े राजनेता को भी इस समाज के आगे गिड़गिड़ाते, वोटों की भीख़ माँगते देखा जा सकता है.

 

दर असल वास्तविकता तो ये है कि इस समाज के योगदान के बिना तो जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

 

वो कर्मयोगी समुदाय तो बलित अर्थात बलशाली या बलिष्ठ समुदाय हुआ. बार-बार उसे दलित, पिछड़ा कहकर अपमानित क्यों किया जाता है? वो तो श्रेष्ठतम समुदाय है. केन्द्र सरकार को तत्काल इस सन्दर्भ में दिशा-निर्देश जारी करना चाहिये कि दलित-महादलित, पिछड़ा-अति पिछड़ा जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग बन्द किया जाए एवं इस सेवाभावी, परोपकारी समुदाय को "बलित समुदाय" कहा जाए.   

 

शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे

०९९२०४ ००११४/०९९८७७ ७००८० 

ghatpandeshishir@gmail.com

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