समय बलवान या 'राज'नीति महान

 


समय बलवान या 'राज'नीति महान

समय से बड़ा:
दग़ाबाज़,
धोख़ेबाज़,
पलटीबाज़ कोई नहीं. ये आज हमारा है तो कल विरोधियों का होगा.

ये किसी का भी सगा नहीं!
कोई बाक़ी नहीं जिसे ठगा नहीं!!
लोग लगाते हैं इससे वफ़ा की आस,
भरोसे रहते हैं इसके, चाहते दग़ा नहीं!!

समय ने आज फिर करवट बदली है. इतिहास ने फिर अपने आप को हूबहू दोहराया है, बस चेहरे बदले हैं, लेकिन हालात बिल्कुल वही हैं.

ज़रा याद कीजिये जब १९७५ में जनता के मौलिक अधिकारों को किस तरह कुचला गया था.

२००२ में एक राज्य के मुख्यमंत्री को SIT की १२-१२ सदस्यीय Team ने अपने कार्यालय में बिठाकर ९-९ घंटे की Marathon पूछताछ में किस तरह १००-१०० सवालों की झड़ी लगा दी थी.
लेकिन
उस इंसान ने उफ़ तक नहीं की. पूरी तरह शान्त-संयमित रहकर उस परिस्थिति का अकेले ही डटकर सामना किया और उससे बेदाग़, पाक़-साफ़ होकर निकला.

उस दौरान उस इंसान ने कभी भी अपने मुख्यमंत्री होने का रुतबा नहीं झाड़ा. SIT की एक प्याला चाय तक नहीं पी. खाने का डब्बा और पानी की बोतल भी वो घर से लेकर जाता था.

२०१० में उसी के सिपहसालार यानी राज्य के गृहमंत्री को निशाना बनाया गया, तड़ीपार कराया गया, CBI द्वारा बारम्बार कड़ी Marathon पूछताछ के लिये बुलाया गया.
लेकिन
ना जाने किस मिट्टी के बने थे दोनों. केन्द्र सरकार की सारी तन्त्र प्रणाली थी कि दोनों को ही तोड़ने की जी-तोड़ कोशिश की,
लेकिन
आख़िरकार घोर नाकामी ही हाथ लगी. आकाओं के इशारे पर नाचते:
चमचे,
ग़ुलाम,
दरबारी,
चाटुकार मिलकर भी उन दोनों का कुछ नहीं बिगाड़ पाए.

दौर बदला है,
समय बदला है,
मोहरे वही हैं, स्थान बदला है.

अब बारी उनकी है. लेकिन ये क्या?????

#डरपोक_युवराज ने तो समूची Party को ही रस्ते पर ला दिया, धंधे पर लगा दिया.

मैं २०१९ आम चुनाव के बाद से ही लिखता, कहता आ रहा हूँ कि २०२४ आम चुनाव घेंडी ख़ानदान के राजनैतिक Career का अन्तिम चुनाव साबित होगा, और ये मैंने यूँ ही नहीं कह दिया था, बल्कि इसके पीछे मज़बूत तार्किक कारण हैं:

१. मोदीजी के सामने दो लोकसभा और लगभग ४५ अन्य चुनाव बुरी तरह हारने वाले व्यक्ति को २०२४ में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रुप में UPA के घटक दल कभी स्वीकार नहीं करेंगे.

२. यदि:
चमचों,
ग़ुलामों,
चाटुकारों,
दरबारियों ने युवराज को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की कोशिश भी की तो UPA तो दूर, कांग्रेस का भी टुकड़ों में बंटना:
तय है,
अटल है,
सुनिश्चित है.

बहरहाल! मैं थोड़ा सा चूक गया. मेरा आंकलन ज़रा ग़लत हो गया. मैं बड़ा भाई-मोटा भाई की ताक़त और मंशा को भांप नहीं पाया. उन्होंने तो २०२४ का इन्तज़ार ही नहीं किया, १४ महीने पहले ही Game कर डाला.

शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे
०९९२०४००१२४/०९९८७७७००८०
ghatpandeshishir@gmail.com

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