क्या राहुल गाँधी भीतरघातियों की साज़िश का शिकार हुए?


 

क्या राहुल गाँधी भीतरघातियों की साज़िश का शिकार हुए?

क्या राहुल गाँधी भीतरघातियों की साज़िश का शिकार हुए? यदि मुझसे ये सवाल पूछा जाता तो मैं कहता *बिल्कुल*.

और मैं तर्कों और तथ्यों के साथ बड़ी आसानी से इसे साबित भी कर सकता हूँ. अब ज़रा २०१४ से लेकर आज तक:

देश के ज्वलन्त मुद्दों,
देश की राजनैतिक परिस्थितियों,
कांग्रेस Party के कार्यकलापों एवम् महत्वपूर्ण निर्णयों पर ही नज़र डाल लें तो इन सब पर ही:

ग़ुलामों,
चमचों,
चाटुकारों,
दरबारियों द्वारा राहुल गाँधी को:

उकसाया गया,
भड़काया गया,
बरगलाया गया,
दिग्भ्रमित किया गया,
बुलवाया-कहलवाया गया.

और

चाण्डाल चौकड़ी द्वारा उनका तमाशा बनाया गया.

अब अगर मुद्दों की ही बात कर लें तो प्रमुख या ज्वलन्त मुद्दे होने चाहिये थे:

भीषण महंगाई,

भयावह बेरोज़गारी,

डूबती अर्थ व्यवस्था,

लुटे-पिटे-बेहाल अन्नदाता,

बर्बाद छोटे-मझौले व्यवसायी,

तबाह-बदहाल निम्न एवम् मध्यमवर्ग इत्यादि.

लेकिन

ज्वलन्त या प्रमुख मुद्दे क्या बनाए गए:

मोदी,
माल्या,
चौकसी,
अडाणी,
कोरोना,
नोटबन्दी इत्यादि.

नि:सन्देह, ये भी ज़रुरी मुद्दे थे/हैं,

लेकिन

ये दूसरे क्रम पर रखे जा सकते थे.

और

ऐसा भी नहीं है कि जिन मुद्दों को राहुल गाँधी के ज़रिये उठाया गया, उनमें से एक में भी कांग्रेस को विजय प्राप्त हुई हो
अथवा एक भी परिणाम तक पहुँचा हो.

इस चाण्डाल चौकड़ी द्वारा राहुल गाँधी को आगे रखकर:

श्रीराम मन्दिर निर्माण,
तीन तलाक़ हटाए जाने,
धारा ३७० हटाए जाने,
CAA लागू किये जाने,
कृषि सुधार क़ानून विधेयक का भी अनावश्यक विरोध करवाया गया.

इतना ही नहीं राहुल गाँधी से:

पत्थरबाज़ों,
टुकड़े Gangs,
अलगाववादियों,
अफ़ज़ल-बुरहान-सोहराब-याक़ूब-इशरत जैसे आतंकियों का पुरज़ोर समर्थन भी करवाया गया.

और जब इतने से भी इस भीतरघाती चाण्डाल चौकड़ी का मन नहीं भरा तो राहुल गाँधी के मुख से देश के प्रधानमंत्री के लिये:

चोर,
फेंकू,
झूठा,
बेईमान,
डरपोक,
जुमलेबाज़,
ख़ून की दलाली करने वाला जैसे अपमानजनक शब्दों एवम् भाषावली का प्रयोग करवाया गया.

एक तरफ़ Surgical Strike पर सवाल उठाकर सेना के शौर्य को अपमानित करवाया गया
तो दूसरी तरफ़:

रोहिंग्यों,
अवैध बांग्लादेशियों,
देश के दुश्मन घुसपैठियों का पुरज़ोर समर्थन करवाया गया,
आतंकी हमलों में पाकिस्तान को Clean Chit देते हुए उसका आरोप हिन्दूवादी संगठनों पर मढ़वाया गया, 

जानबूझकर मुस्लिम Vote Bank की राजनीति करवाई गई, नतीजतन कांग्रेस का स्थाई हिन्दू मतदाता भी उससे दूर होता चला गया, लगातार दो लोकसभा और देश भर में हुए अन्य ४० से ज़्यादा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई, अनेक क़ददावर नेताओं समेत, लाखों कर्मठ कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस छोड़ दी, जिसका ठीकरा राहुल गाँधी पर फोड़ा जा रहा है.

आधुनिक भारत के निर्माण हेतु शुरु की गईं कुछ अच्छी योजना-परियोजनाओं:

Metro,
Smart City,
Bullet Train,
Digital India,
Make In India,
Start Up India,
Infrastructural Projects का भी पुरज़ोर विरोध करवाया गया. जबकि प्रमुख विपक्षी दल के सर्वोच्च नेता होते हुए भी, यदि राहुल गाँधी से देशहित में इनका समर्थन करवाया जाता तो न केवल उनकी भरपूर सराहना होती,

बल्कि

देश-विदेश में राहुल गाँधी की प्रतिष्ठा-ख्याति भी बढ़ती.

लेकिन:

यही तो वो भीतरघाती, षड़यन्त्रकारी नहीं चाहते थे. उनका मक़सद तो राह के कांटे अर्थात् राहुल गाँधी को उठाकर अपने रास्ते से बाहर फेंकना था, और वो क़ामयाब भी हो गए.

शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे
०९९२०४०९११४/०९९८७७७००८०
ghatpandeshishir@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. भाई, क्या आप कहना चाहते है कि श्री राहुल गांधी जी कोई भी काम अपने दिमाग से नहीं करते, जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे किसी और का दिमाग होता है. अगर ऐसा है, तो फिर ये कॉंग्रेस और स्वयं श्री राहुल गांधी जी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है.

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