"पनौती" कौन?

"पनौती" कौन? पनौती यानी मनहूस. जी हाँ, इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया था एक बिगड़ैल शहज़ादे ने, देश के यशस्वी प्रधानमन्त्री और विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति के लिये, जो ख़ुद न केवल बेहद निकम्मा-नकारा-असफल व्यक्ति है, बल्कि जिसे भारत के इतिहास-भूगोल-अर्थतन्त्र-सभ्यता-संस्कृति-रीति-रिवाजों-परम्पराओं के बारे में कुछ भी नहीं पता और यहां तक कि जिसे राष्ट्रगान भी नहीं आता.  वो चमचों-चाटुकारों-दरबारियों के बिना एक कदम नहीं चल सकता, लिख-पढ़-बोल नहीं सकता. कहने के पास उसका अपना कुछ नहीं है, सबकुछ बाप-दादी, पिता के ननिहाल का ही है. जीवन में उस व्यक्ति की अपनी कोई उपलब्धि-सफलता नहीं यहाँ तक कि उसका अपने जीवन का कोई ध्येय-लक्ष्य नहीं, बस जहाँ चाटुकार-दरबारी कह दें, वो निकल पड़ता है और जब इस पर भी कुछ हासिल न हो तो सहानुभूति की नौटंकी यानी Emotional Blackmailing शुरु कर देता है, "मेरी दादी, मेरे पिताजी......" जिन्हें क्रमशः ३९ से अधिक एवं साढ़े ३२ साल हो चुके हैं. अरे, कब तक उनके नाम पर ख़ुद को राजगद्दी सौंपे जाने की भीख़ माँगते रहोगे? बहरहाल, हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में उसकी फिर करारी, प्रचण्ड हार हुई है और हराने वाला और कोई नहीं, वो ही व्यक्ति है, जिस पर इस मन्दबुद्धि-महामूर्ख ने अभद्र टिप्पणी की थी.  लेकिन अब सबसे महत्वपूर्ण एवं विचारणीय बात ये है कि विधानसभा चुनाव होते हुए भी ये चुनाव पूरी तरह मोदी बनाम राहुल में परिवर्तित हो चुका था और इसे मोदी बनाम राहुल बनाने में दोनों ही दलों के नेता-कार्यकर्ताओं ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. देश के तीन बड़े राज्यों में कॉंग्रेस की हार हुई है, तो क्या ये माना जाए कि मोदी के सामने लगातार दो लोकसभा, चालीस से ज़्यादा विधानसभा, देश भर के निकाय और यहाँ तक कि अमेठी से खुद का लोकसभा चुनाव तक बुरी तरह हार जाने वाले: राहुल गाँधी, एक बार फिर मोदी से बुरी तरह मात खा गए हैं, देश भर में "भारत जोड़ो यात्रा" निकालने और उसकी प्रचण्ड सफलता और समर्थन के दावों के बावजूद? क्या ऐसी स्थिति में, I.N.D.I.A. के घटक दल २०२४ में राहुल गाँधी के नेतृत्व अथवा अगुवाई में लोकसभा चुनाव लड़ना स्वीकार करेंगे? क्या कॉंग्रेस के ही नेता-कार्यकर्ता, राहुल गाँधी के नेतृत्व में २०२४ लोकसभा चुनाव लड़ना स्वीकार करेंगे? क्या कॉंग्रेस के युवा नेता-कार्यकर्ताओं के मन में स्वयं के राजनैतिक भविष्य को लेकर, राहुल गाँधी के नेतृत्व के प्रति शंका-आशंका-कुशंकाएँ उत्पन्न नहीं होंगीं? दूसरी ओर, मोदी के लिये भाजपा और राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ की ओर से हरी झण्डी ही थी, भले ही मध्यप्रदेश और राजस्थान के चुनाव परिणाम कुछ भी होते, क्योंकि मोदी को अपने आपको साबित करने जैसी कोई परीक्षा नहीं थी तो दूसरी ओर राहुल गाँधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ही स्वयं को साबित करने की है. तो क्या इन चुनावी समीकरणों और देश की जनता के Mood को भाँपते हुए, २०२३ विधानसभा चुनावों को क्या माना जाए, Semi Final या Final? और हाँ, इन सबसे भी अत्यन्त महत्वपूर्ण सवाल: अब या तो कॉंग्रेस Party बताए या राहुल गाँधी स्वयं बताएँ कि "पनौती" कौन? शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे भोपाल, मध्यप्रदेश. ०९९२०४ ००११४/०९९८७७ ७००८०

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कैसे बाहर निकलें, नैराश्य एवम् नकारात्मकता के गहन अंधकार से 🤔

किशोर कुमार, संगीत की दुनियां का टिमटिमाता सितारा

"लता मंगेशकर एक अजर-अमर-शाश्वत नाम"