आख़िरकार कैसे रोका जाए बलात्कार जैसे घृणित, वीभत्स, निर्मम अपराध को?


 

१-२ साल की मासूम बच्चियों से लेकर ९१ साल की वृद्धा से दुष्कर्म की घटनाओं ने देश का दिल दहला दिया है. घर के आँगन के बाद बच्चों के लिये जिसे सबसे ज़्यादा सुरक्षित समझे जाने वाले विद्या मन्दिर, बाग़-बग़ीचे, खेत-खलिहान यहाँ तक कि मन्दिर-मस्ज़िद-मदरसे भी सुरक्षित नहीं, बल्कि यही उन मासूमों के कालस्थल बनते जा रहे हैं.

पता नहीं हमारे देश में अपराध के पीछे के कारणों और अपराध को घटित होने से रोकने के उपायों से ज़्यादा सज़ा पर ही ज़ोर क्यों दिया जाता है?

Rape एक ऐसा अपराध है जो Preplanned या सुनियोजित नहीं होता बल्कि अचानक या अकस्मात् किया जाता है. कोई माने या ना माने लेकिन Rape के पीछे फ़िल्मों, TV Channels, Internet, Mobile, अश्लील साहित्य और सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ती अश्लीलता बहुत बड़े कारण हैं. इन पर गम्भीरतापूर्वक विचार और चर्चा करने की बजाए, सज़ा के प्रावधानों और तरीक़ों जैसे फाँसी, आजीवन कारावास, सार्वजनिक मृत्युदण्ड, तालिबानी सज़ा अथवा बालिग-नाबालिग, मनोरोगी इत्यादि पर ही चर्चा की जाती है.

जब भी किसी महिला के साथ कोई अप्रिय घटना घटती है तो समाज के तथाकथित ठेकेदार उसके पहनावे से लेकर दैनिक जीवन, रहन-सहन पर ही सवाल खड़े करना शुरू कर देते हैं. कोई भी महिला क्या पहने-क्या ना पहने, कहाँ आए जाए या कहाँ ना आए जाए, कब और किस समय आए या जाए, किससे बोलचाल-बातचीत करे ना करे इसे निर्धारित करने का पूर्ण अधिकार केवल और केवल उसका अपना है और इनको लेकर किसी भी वाहियात इन्सान को उसके साथ दुर्व्यवहार करने का License नहीं मिल जाता. इसे लेकर कोई भी किसी महिला के साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार करता है तो उसे क़ानून के मुताबिक़ कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी ही चाहिये.

लेकिन साथ ही हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि समाज और दुनियां में इन्सानों के भेस में हैवान-शैतान भी मौजूद हैं और ऐसे लोग जब भी फिल्मों, TV Channels, Internet, Mobile, अश्लील साहित्य या सार्वजनिक स्थलों पर अश्लीलता देखते हैं तो उनके अन्दर हैवानियत या शैतानियत हावी हो जाती है और वो मौक़े की तलाश में लग जाते हैं, जिसका शिकार ज़्यादातर असहाय-कमज़ोर-लाचार लड़की-महिला या बच्ची तक हो जाती है जिसका वस्त्र-पहनावे से कोई लेनादेना नहीं होता.

 

ज़रा कल्पना कीजिये उस पीड़िता की:

 

जो निर्दोष/निष्पाप होने पर भी, इस तथाकथित समाज का सामना करने में, स्वयं को असमर्थ पा रही हो, बेबस-असहाय-लाचार महसूस कर रही हो. 

जिसे तथाकथित सभ्य समाज, शक़ भरी निग़ाहों से देख रहा हो. 

जिसके मन में पल-पल अपना जीवन समाप्त करने का ख़्याल आ रहा हो या जो अपना जीवनसमाप्त ही मान चुकी हो. 

शरीर पर लगे घावों को तो भुलाया भी जा सकता है लेकिन मन और आत्मा पर लगे घावों को आजीवन भुलाया नहीं जा सकता, भले ही उसके "अपने" लाख कोशिश-जतन कर लें.

 

आईये, अब ज़रा हमारे तथाकथित जनप्रतिनिधियों के उन नीचतापूर्ण बयानों पर भी नज़र डालें, जो सीधे तौर पर दरिन्दों/हैवानों/शैतानों/नराधमों/नरपिशाचों की हौंसलाअफ़ज़ाई करते हैं, हिम्मत बढ़ाते हैं, उनके नीच-घृणित कृत्यों का बचाव करते हैं:

 

"Rape का क्या है, वो तो होते ही रहते हैं"

"लड़की का DNA Test कराया जाना चाहिये"

"लड़कों से ग़लती हो जाती है, तो क्या फाँसी दें दें?"

"हमारी सरकार आएगी तो हम फाँसी की सज़ा ख़त्म करेंगे"

 "यदि अपने साथ हो रहे Rape को रोक न सको, तो उसका मज़ा लो"   

 

"बेटी बचाओ" जैसे खोखले नारों से कुछ नहीं होगा. यदि वास्तव में बेटियों को बचाना है तो हमें ऐसी नीच, गन्दी, बेहूदा, वाहियात सोच रखने वाले इन तथाकथित जनप्रतिनिधियों को भी उखाड़ फेंकना होगा. 

Rape जैसे वीभत्स अपराध की सज़ा केवल फाँसी या आजीवन कारावास नहीं हो सकती.. Rapist के लिये सबसे उपयुक्त सज़ा आजीवन नपुंसकता है.

निर्भया प्रकरण के बाद Supreme Court के Retd. Judge Justice दीपक वर्मा को Rape सम्बन्धी क़ानून/धाराओं में संशोधन एवं सज़ा के प्रावधानों पर जनता से राय लेकर उसकी समीक्षा करने और अपना पक्ष रखने को कहा गया. देश भर से आक्रोशित लोगों ने अपनी राय/सिफ़ारिशें भेजीं जिनमें Rapist को सार्वजनिक रूप से बीच चौराहे पर फाँसी देने, सार्वजनिक रूप से बीच चौराहे पर ज़िन्दा जला देने, नपुंसक बना देने, जनता के हवाले कर देने, फाँसी देने, आजीवन कारावास देने जैसी राय-सिफ़ारिशें भी सम्मिलित थीं.

Justice वर्मा ने मानवीयता का हवाला देते हुए उन सभी राय-सिफ़ारिशों को नकार दिया और वर्तमान न्यायालयीन प्रक्रिया पर और उसके न्याय पर अपनी सहमति और विश्वास व्यक्त किया.

कुछ दोषियों को भले ही फाँसी पर लटका दिया गया हो लेकिन निर्भया प्रकरण का सबसे वहशी दरिन्दा मात्र कुछ दिनों की बेमानी छूट के चलते साफ़ बचकर निकल गया, इस बात का अफ़सोस देश की जनता के साथ निर्भया की आत्मा को भी ज़रूर होगा।

अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य कदम अथवा नियम, जिन्हें तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना चाहिये:

1.     School-College-विश्व विद्यालयों-अन्य शैक्षणिक संस्थानों-Hostels-सरकारी एवं ग़ैर सरकारी संस्थाओं इत्यादि में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो

  1. Teaching और Management Staff के अलावा, Sports Teacher, Cultural Teacher, School Bus/Van/Other Vehicles इत्यादि में Conductor-Cleaner, सुरक्षाकर्मी, सफ़ाईकर्मी इत्यादि अनिवार्य रूप से महिलाएं भी हों
  2. School-College-विश्व विद्यालयों-अन्य शैक्षणिक संस्थाओं-Hostels-सरकारी एवं ग़ैर सरकारी संस्थाओं इत्यादि में अनुशासनात्मक समिति का अनिवार्य रूप गठन से हो और जिसमें महिलाओं की भागीदारी बराबरी की हो
  3. प्रत्येक पुलिस थाने में महिलाओं से सम्बन्धित अपराधों हेतु अलग विभाग-समिति अनिवार्य रूप से गठित की जानी चाहिये जिसमें महिला-पुरुष अधिकारी-कर्मचारियों की बराबरी की भागीदारी हो
  4. प्रत्येक छोटे-बड़े शहर में Remote-Isolated Areas की List तैयार करके पुलिस चौकियां-गश्त-Patrolling बढ़ाई जानी चाहिये
  5. रिहाईशी इलाकों से शराब की दुकानें-बार इत्यादि हटाए जाने चाहिये
  6. शराबख़ानों-Bar इत्यादि की समय-सीमा अधिकतम रात्रि १० बजे तक की जानी चाहिये
  7. देश भर में नशे के कारोबार पर सख़्ती से लगाम कसी जानी चाहिये क्योंकि ज़्यादातर अपराध नशे की अवस्था में ही किये जाते हैं
  8. फ़िल्मों-TV Channels-Internet-Mobile-मोबाइल-अश्लील साहित्य-सार्वजनिक स्थलों पर अश्लीलता को रोके जाने हेतु सख़्त क़दम उठाए जाने चाहिये
  9. महिला सम्बन्धी किसी भी प्रकार के अपराध में चार्जशीट प्रस्तुत करने की अवधि अधिकतम १५ दिवस की जानी चाहिये
  10. महिला सम्बन्धी किसी भी प्रकार के प्रकरण की सुनवाई Fast Track Court के तहत अधिकतम ६ माह में होनी चाहिये
  11. प्रत्येक थाने में महिलाओं से सम्बन्धित अपराधों के लिये अलग विभाग-अलग Team बनाई जाए, जिसके तहत DSP स्तर की महिला अधिकारी के अधीन पुरुष Inspector, महिला Inspector/Sub Inspector, पुरुष हवलदार/Constable और दो-दो महिला-पुरुष सिपाहियों की नियुक्ति की जाए.
  12. प्रत्येक थानान्तर्गत पड़ने-आने वाले सुनसान-एकान्त क्षेत्रों का Detailed/गहन Survey/ छानबीन कर Report ज़िला-राज्य-केन्द्र के गृह विभागों में सुझाव-Action Plan के साथ सम्मिलित की जाए
  13. सुनसान-एकान्त क्षेत्रों में गश्त-CCTV अधिकाधिक एवं मुस्तैद किये जाने हेतु पर्याप्त प्रबन्ध किये जाए
  14. समस्त रहवासी-रिहाईशी Societies, आवासगृहों, परिसरों, Shopping Malls/Complexes, दुकानों, School-Colleges -अन्य शिक्षण संस्थानों, समस्त सरकारी-ग़ैर सरकारी संस्थानों एवं कार्यालयों, सरकारी एवं निजी चिकित्सालय-Nursing Homes, सिनेमागृहों, Park-बग़ीचे एवं अन्य सार्वजनिक-असार्वजनिक स्थानों इत्यादि पर CCTV की अनिवार्यता सुनिश्चित की जाए
  15. देशभर में मोहल्ला सुरक्षा समितियों का गठन किया जाए
  16. Rape एक अमानवीय एवं बर्बरतापूर्ण अपराध है इसीलिये अपराधी के प्रति किसी भी प्रकार की मानवीयता अथवा सहानुभूति ना बरतते हुए आजीवन नपुंसकता की सजा का प्रावधान किये जाने हेतु संसद में क़ानून बनाया जाना चाहिये
  17. न्यायपालिका से भी ऊपर संसद है. संसद सर्वोच्च है. न्यायपालिका संविधान के अधीन आती है और संसद का काम है, संविधान का पालन करवाना. अगर न्यायपालिका का काम न्याय करना है तो संसद का काम न्यायपालिका से भी संविधान के दायरे में या संविधान का अनुपालन कराते हुए उसे मार्गदर्शित करना है.

बलात्कार जैसे अपराधों की समाप्ति और अपराधियों को जल्द से जल्द कड़े से कड़ा दण्ड दिलाने के लिये तत्काल सर्वदलीय संसदीय समिति का गठन किया जाए. इस समिति के कार्य होंगे:

  1. न्यायपालिका/न्यायालय से दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही या प्रक्रिया की जानकारी/day to day reporting लेना और ये सुनिश्चित करना की कार्यवाही या प्रक्रिया त्वरित गति से हो
  2. मामले की कार्यवाही-प्रक्रिया निर्णय तक प्रतिदिन चले, तारीख़ दर तारीख़ नहीं
  3. संसदीय समिति को अधिकार होगा कि यदि ज़रूरत पड़े तो Judge/न्यायाधीश, सरकारी वकील, जाँच से जुड़े पुलिस अधिकारी-कर्मचारियों इत्यादि से सवाल-जवाब कर सके, उन्हें मार्गदर्शित कर सके अथवा आवश्यक निर्देश दे सके
  4. संसदीय समिति को अधिकार होगा कि वो सर्वसम्मति से जज-न्यायाधीश, सरकारी वकील, जाँच से जुड़े अधिकारी-कर्मचारियों की नियुक्ति कर सके या उनकी कार्यपद्धति से असन्तुष्ट होने पर उन्हें हटा सके
  5. संसदीय समिति सुनिश्चित करे कि निम्न से सर्वोच्च न्यायालय तक चलने वाली कार्यवाही या प्रक्रिया के अन्तर्गत अधिकतम ६ माह की अवधि में मामले का अन्तिम निर्णय आ जाए और इन सबसे भी बेहद महत्वपूर्ण है कि १ माह के भीतर Charge Sheet/Case Diary अनिवार्य रुप से न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने हेतु कठोर नियम/आदेश/दिशा निर्देश बनाए जाएं
  6. पुलिस अथवा प्रशासन के किसी भी स्तर के अधिकारी-कर्मचारी द्वारा कोताही बरतने, अपराधियों की मदद अथवा पीड़ितों के साथ अन्याय की स्थिति में तत्काल प्रकरण दर्ज किये जाने तथा कठोर दण्ड के प्रावधान किये जाएं

अजीब विडम्बना है कि  हमारे देश में ५ साल पूर्ण किये हुए बच्चे का तो हर जगह पूरा Ticket लगता है लेकिन १७ साल और ३६४ दिन पूर्ण किया हुआ या वयस्कता की आयु १८ वर्ष से एक दिन भी कम का बलात्कारी , नाबालिगकहलाता है.

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