"पुलिस", दुष्कर-कठिनतम परिस्थितियों में भी जनरक्षा हेतु सदैव तत्पर।
अपने:
घर-परिवार
दोस्त-यार
तीज-त्यौहार, परे रखकर:
अपना निजी/व्यक्तिगत जीवन,
अपना सर्वस्व जनसुरक्षा हेतु न्यौछावर कर,
पल-पल, क्षण-क्षण सदैव नि:स्वार्थ सेवा में तत्परता का:
अद्वितीय
अतुलनीय उदाहरण है "पुलिस"।
राजनेताओं के
रसूख़दारों के
आमजन के भारी दबावों के बीच,
अत्यन्त दुष्कर-कठिनतम परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले,
सदैव अपने प्राणों एवम् परिजनों के भविष्य को दांव पर लगाकर भी कार्य में तत्परत रहने वाले,
देश एवम् समाज के रक्षकों को बदलें में क्या मिलता है?🤔
यहां तक कि, अपराधियों पर भी ठोस कार्यवाही करो तब भी आलोचना।
राजनेताओं-रसूख़दारों के दबाव में आए बिना, अपराधियों पर कठोर कार्यवाही करो तो घर-परिवार से दूर, बारम्बार स्थानान्तरण और कभी-कभी तो निलम्बन।
अपेक्षित जनसहयोग न मिलने के चलते, कभी किसी प्रकरण-कार्यवाही में विलम्ब होने पर भारी जन आक्रोश का सामना।
२०२० कानपुर की घटना हो या दिल्ली दंगे, हज़ारों ऐसी घटनाएं हैं, जहां पुलिसकर्मियों को अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी है, गम्भीर घायल होना पड़ा है।
लेकिन,
यदि आत्मरक्षा में भी, दुर्दांत अपराधी या अपराधियों के, ग़लती से भी मारे जाने पर, "पुलिस" को न केवल चौतरफ़ा आलोचनाओं वरन् राजनेताओं के अनुचित कोप-प्रकोप का सामना करना पड़ता है, यहां तक कि निर्दोष होने पर भी कई बार दण्ड, निलम्बन या सेवा से निष्कासन का सामना करना पड़ता है।
२०१६ में, भोपाल में, "Student Islamic Movement Of India के संदिग्ध आतंकियों के Jail से भागने के दौरान किया गया Encounter हो
या
२०२० में, कानपुर में, आठ पुलिसकर्मियों की जान लेने वाले दुर्दांत अपराधी विकास दुबे का, आत्मरक्षा में किया गया Encounter हो
या
दिल्ली, मुज़फ़्फ़रनगर समेत देश भर में कहीं भी:
दंगाईयों
आतंकियों
दुर्दांत अपराधियों पर भी की गई कार्यवाहियों पर,
पुलिस को भारी आलोचनाओं एवम् राजनैतिक दबाव का सामना करना पड़ा है और अक्सर करना पड़ता है। इसका ताज़ातरीन उदाहरण सम्भल है।
लेकिन
इसके बावजूद क्या कभी पुलिसकर्मियों द्वारा:
हड़ताल
कार्य के बहिष्कार
विरोध-निषेध प्रदर्शन की ख़बर-बात सुनी है?🤔
जी नहीं। "सहते रहो पर कुछ मत बोलो"।
कभी-कभार, मामूली सी भूल-चूक पर भी, पुलिस को भारी आलोचना-प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। पुलिस से, भूलवश भी भूल हो जाना भी मानो अक्षम्य अपराध है।
देश भर में समस्त:
निजी
शासकीय
अशासकीय
कर्मचारी अथवा:
विभाग-संगठन, आए दिन:
हड़ताल
धरने प्रदर्शन
कार्य का विरोध-निषेध करते रहते हैं।
एकमात्र पुलिस विभाग ही है, जो सबसे अधिक दबाव एवम् "पीड़ा-प्रताड़ना" भी चुपचाप सहन कर लेता है।
नि:स्वार्थ सेवाभाव से,
अपना सर्वस्व न्यौछावर कर,
सदैव जनसेवा-सुरक्षा में समर्पित,
जांबाज़-कर्तव्यपरायण "पुलिस" को:
विनम्र अभिवादन
हार्दिक अभिनन्दन 💐
जयहिन्द 🙏
सदैव शुभाकांक्षी,
शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे
०९९२०४००११४/०९१११९०३१३१
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