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महानायक ही नहीं, दिलों के नायक:

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हिन्दी के सुविख्यात कवि श्री हरिवंशराय बच्चन और समाजसेविका श्रीमती तेजी बच्चन के यहाँ ११ अक्टूबर १९४२ को जब पहली सन्तान ने जन्म लिया तब शायद किसी ने सपने में भी ये सोचा नहीं होगा कि क़द के साथ-साथ उसकी ख्याति ऊँची होकर विश्व भर में छा जाएगी।  देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत श्री हरिवंशराय बच्चन ने बड़े दुलार से उस बालक का नाम इंक़लाब रखा लेकिन बाद में अपने अभिन्न मित्र और सुविख्यात कवि श्री सुमित्रानन्दन पन्त के कहने पर परिवर्तित करके अमिताभ नाम दिया। अमिताभ, जिसका अर्थ है सदैव दैदीप्यमान, कभी न मिटने वाला प्रकाश अथवा सूर्य. वाकई, कितना सार्थक साबित हुआ ये नाम। सुविख्यात कवि और समाजसेविका के पुत्र होने और देश के सबसे बड़े राजनैतिक घराने से गहन पारिवारिक सम्बन्धों के बावजूद अति विलक्षण प्रतिभा के धनी अमिताभ ने तो अपने बलबूते पर कुछ और ही करगुज़रने की ठान ली थी।  स्कूली दिनों से शुरू हुआ अभिनय का शौक़ या कहें कि जुनून कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म होने के साथ-साथ और भी बढ़ता गया। हालांकि, १९६३ से १९६८ तक पाँच साल कलकत्ता में दो प्रतिष्ठित कम्पनियों में नौकरी भी की, लेकिन मन में तो कुछ और ही...

"लता मंगेशकर एक अजर-अमर-शाश्वत नाम"

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 "लता मंगेशकर एक अजर-अमर-शाश्वत नाम"  नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा! मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे!! तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे!  जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग संग तुम भी गुनगुनाओगे!! कितनी सार्थक हैं ये पंक्तियाँ स्वर कोकिला, माँ सरस्वती का वरदान प्राप्त श्रद्धेय लता मंगेशकर जी यानी हम सबकी "लता दीदी" पर. २८ सितम्बर १९२९ को मध्यप्रदेश के इन्दौर में अवतरित लता दीदी का घरेलू माहौल पूर्णतः संगीत-कलामय ही था.  उनके पिता श्री दीनानाथ मंगेशकर रंगमंच के सुप्रसिद्ध गायक-कलाकार थे. १९४२ में पिता के निधन के बाद, मात्र तेरह वर्ष की आयु में ही लता दीदी के ऊपर तीन छोटी बहनों एवं एक छोटे भाई की ज़िम्मेदारी एवं जवाबदारी आन पड़ी, और ये बताने की ज़रूरत नहीं कि किस ख़ूबी से उन्होंने अपनी इस ज़िम्मेदारी और जवाबदारी को निभाया और अपने चारों भाई-बहनों को उनकी मंज़िल-मक़ाम तक पहुँचाया, नाम-काम-शौहरत से उनका परिचय कराया.  १९४७ में प्रदर्शित "आपकी सेवा में" लता दीदी को पार्श्व गायन का पहला अवसर मिला. बस फिर क्या था, लता दीदी ने अपनी सुरीली आवाज़ का वो जादू चलाया कि थोड़े अन्तराल ...

आख़िरकार कैसे रोका जाए बलात्कार जैसे घृणित, वीभत्स, निर्मम अपराध को?

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  १-२ साल की मासूम बच्चियों से लेकर ९१ साल की वृद्धा से दुष्कर्म की घटनाओं ने देश का दिल दहला दिया है . घर के आँगन के बाद बच्चों के लिये जिसे सबसे ज़्यादा सुरक्षित समझे जाने वाले विद्या मन्दिर , बाग़-बग़ीचे , खेत-खलिहान यहाँ तक कि मन्दिर-मस्ज़िद-मदरसे भी सुरक्षित नहीं , बल्कि यही उन मासूमों के कालस्थल बनते जा रहे हैं. पता नहीं हमारे देश में अपराध के पीछे के कारणों और अपराध को घटित होने से रोकने के उपायों से ज़्यादा सज़ा पर ही ज़ोर क्यों दिया जाता है ? Rape एक ऐसा अपराध है जो Preplanned या सुनियोजित नहीं होता बल्कि अचानक या अकस्मात् किया जाता है. कोई माने या ना माने लेकिन Rape के पीछे फ़िल्मों , TV Channels, Internet, Mobile, अश्लील साहित्य और सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ती अश्लीलता बहुत बड़े कारण हैं. इन पर गम्भीरतापूर्वक विचार और चर्चा करने की बजाए , सज़ा के प्रावधानों और तरीक़ों जैसे फाँसी , आजीवन कारावास , सार्वजनिक मृत्युदण्ड , तालिबानी सज़ा अथवा बालिग-नाबालिग , मनोरोगी इत्यादि पर ही चर्चा की जाती है . जब भी किसी महिला के साथ कोई अप्रिय घटना घटती है तो समाज के तथाकथित ठेकेदार उसके पहनावे से ल...