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हाहाकार

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  आधा देश जलमग्न हो चुका है. भयावह बाढ़ से त्रस्त आम जनता त्राहिमाम् कर रही है. चारों ओर प्रकृति ने हाहाकर मचा रखा है और हर साल मचाती है. समय-समय पर इन्सान को चेतावनी भी देती   है ,  लेकिन प्रकृति से खिलवाड़ करने वाले हैं कि समझने को तैयार ही नहीं. पेड़ों-जंगलों को काटना , पहाड़ों को काटना-तोड़ना , सीमेंट-गारे के जंगल बनाना जारी है. हर साल आधा देश भयावह बाढ़ की त्रासदी झेलता है तो आधा भीषण सूखे की मार. उस पर तूफ़ान , आँधी , ओलावृष्टि , बे-मौसम बरसात , टिड्डी-कीट-पतंगे-इल्ली के प्रकोप ने देश के अन्नदाता को बर्बाद करने के साथ ही आम जनता को भी बुरी तरह त्रस्त कर रखा है. कभी सूख़े , कभी बे-मौसम बरसात , कभी बाढ़ या अतिवृष्टि तो कभी ओलावृष्टि क्या "देश के अन्नदाता" और आम जनता की क़िस्मत में हर परिस्थिति में केवल रोना , बिलखना , तड़पना , त्रस्त होना ही लिखा है ? i आख़िरकार मानसून के आगमन के पूर्व ही नदियों , तालाबों , जलाशयों , कुओं , बावड़ियों का सफ़ाई एवं गहरीकरण अभियान युद्धस्तर पर क्यों नहीं चलाया जाता ? ii हर वर्ष भीषण बाढ़ से कोहराम मचाने वाली नदियों और उनकी चपेट में आने वा...

#BycottBollywood

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बेहूदा करण जौहर अनन्या पाण्डे से पूछता है "आख़री बार SEX कब किया था?" वो जवाब देती है, "आज सुबह ही किया था"., विद्या बालन से पूछता है "एक बार SEX के बाद दूसरे Round के लिये कितनी देर में तैयार हो जाती हो?", आलिया भट्ट से पूछता है "SEX के लिए कौन सी Position पसन्द है?" और करीना कपूर से पूछता है "लिंग के Size से क्या फ़र्क़ पड़ता है?" ये सभी बहूदाएँ भी बड़ी बेशर्मी से, मज़े और चटख़ारे लेकर इन वाहियात सवालों के जवाब देती हैं. सोनम कपूर तो इनसे भी आगे जाकर ये तक कह देती है कि "मेरे सारे भाई, मेरी सारी दोस्तों के साथ सो चुके हैं".   विद्या बालन से रणवीर सिंह नंगे के Photo Shoot के बारे में पूछा जाता है तो वो बड़ी बेशर्मी से कहती है, "हमें भी तो आंखें सेंक लेने दीजिये".  आलिया भट्ट, अर्जुन कपूर समेत कई Bollyवुडिये खुलकर रणवीर सिंह नंगे के समर्थन में आते हैं, और तो और The Tashkent Files और The Kashmir Files जैसी फ़िल्में बनाकर लोगों को जगाने की कोशिश करने वाले विवेक अग्निहोत्री भी. एक Live Show में ट्विंकल खन्ना बड़ी ही बेशर्मी से...

कोरोना: सरकार की विफ़लता, विपक्ष की असहयोगात्मकता और नकारात्मकता, बेबस जनता की विवशता का निकृष्टतम एवं घोर पीड़ादायक उदाहरण

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  कुछ देशों ने भारत से Hydroxychloroquine माँग ली ,  फिर देश के होनहार वैज्ञानिकों ने Vaccine बना ली , अनेक देशों ने Vaccine भी माँग ली , भारी मात्रा में दवाईयाँ , Vaccine विदेशों को दे दी गईं , देश में भी कोरोना का प्रभाव लगातार कम होता चला गया , विदेशों में भारत के "Covid Fighting Model" की तारीफ़ होने लगी ,  बस !!! इतना तो काफ़ी था " साहब " के आत्ममुग्ध होने के लिये। " साहब " के लिये तो ये एक और सुनहरा अवसर था " मैं , " मैनें " करने और स्वयं की पीठ थपथपानेका। दरअसल " साहब ", उनकी सरकार के नुमाइन्दे और तथाकथित सलाहकार , कोरोना की दूसरी लहर का सही अंदाज़ा ही नहीं लगा पाए , और ज़ाहिर है जब अंदाज़ा ही नहीं लगा पाए तो कैसे रोकते और कैसे लड़ते। Vaccine बनाकर , दुनियां को बांटकर स्वयं की पीठ थपथपाते रहे , साथ ही ये मानकर निश्चिन्त हो गए कि "Vaccine बना ली है मतलब कोरोना से जंग जीत ली है। " बस ...