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नियमों का पालन जनता करे, हम तो केवल वसूली करेंगे

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Signal तोड़ने, काग़ज़ात न होने, Helmet नहीं पहनने, Seat Belt नहीं लगाने, No Parking में वाहन लगाने, दुपहिया पर तीन सवारी बिठाने, ग़लती से भी One Way में चले जाने पर वसूली-वसूली-वसूली. लेकिन अंधकारमय सड़कों, घटिया-गढ्ढेदार मार्गों, घटिया-बेतरतीब Traffic व्यवस्था, आवारा पशु-मवेशियों, सड़कों के बीचों-बीच, Divider पर लगी कंटीली झाड़ियों, सड़कों पर होने वाले भारी जलभराव, सड़कों पर खुले पड़े Manhole-Gutter, इत्यादि के चलते होने वाली दुर्घटनाओं में हर साल हज़ारों घर-परिवार उजड़ जाते हैं, उसकी ज़िम्मेदारी-जवाबदेही कौन लेगा? केन्द्रीय परिवहन मन्त्रालय/विभाग, राज्य सरकार केवल लूट-खसौट के लिये ही बने हैं?

हेलमेट, सीट बेल्ट के नाम पर लूट, वसूली चालू

 Helmet, Seat Belt इत्यादि के नाम पर लूट-वसूली मुहिम तेज़ी से चल पड़ी है. ऐसा लगता है, मानो केन्द्र एवम् राज्य सरकारों को आमजन के जीवन की बेहद चिन्ता है. लेकिन क्या सरकारों के पास इन सवालों के जवाब हैं: १. घटिया एवम् खस्ता हाल सड़कों, गढ्ढों के चलते दुर्घटना का शिकार होकर, काल का ग्रास बनने वाले निर्दोषों की अकाल मृत्यु की ज़िम्मेदारी, जवाबदेही कौन लेगा?  २. घटिया, बेतरतीब Traffic व्यवस्था के चलते काल का ग्रास बनने वाले निर्दोषों की अकाल मृत्यु की ज़िम्मेदारी, जवाबदेही कौन लेगा? ३. घने अंधेरे के चलते दुर्घटना का शिकार बनने वाले निर्दोषों की अकाल मृत्यु की ज़िम्मेदारी, जवाबदेही कौन लेगा? ४. आवारा पशु-मवेशियों के चलते दुर्घटना का शिकार बनने वाले निर्दोषों की अकाल मृत्यु की ज़िम्मेदारी, जवाबदेही कौन लेगा? ५. सड़कों के बीचों-बीच, Divider पर लगी झाड़ियों, जो सड़कों तक जा पहुँचती हैं, के चलते दुर्घटना का शिकार बनने वाले निर्दोषों की अकाल मृत्यु की ज़िम्मेदारी, जवाबदेही कौन लेगा? ६. भारी बारिश के दौरान, सड़कों पर होने वाले भारी जलभराव के चलते होने वाली दुर्घटना का शिकार बनने वाले निर...

*महानायक ही नहीं, दिलों के नायक*

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हिन्दी के सुविख्यात कवि श्री हरिवंशराय बच्चन और समाजसेविका श्रीमती तेजी बच्चन के यहाँ ११ अक्टूबर १९४२ को जब पहली सन्तान ने जन्म लिया तब शायद किसी ने सपने में भी ये सोचा नहीं होगा कि क़द के साथ-साथ उसकी ख्याति ऊँची होकर विश्व भर में छा जाएगी. देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत श्री हरिवंशराय बच्चन ने बड़े दुलार से उस बालक का नाम *इंक़लाब* रखा लेकिन बाद में अपने अभिन्न मित्र और सुविख्यात कवि श्री सुमित्रानन्दन पन्त के कहने पर परिवर्तित करके *अमिताभ* नाम दिया. *अमिताभ*, जिसका अर्थ है सदैव दैदीप्यमान, कभी न मिटने वाला प्रकाश अथवा सूर्य. वाकई, कितना सार्थक साबित हुआ ये नाम. सुविख्यात कवि और समाजसेविका के पुत्र होने और देश के सबसे बड़े राजनैतिक घराने से गहन पारिवारिक सम्बन्धों के बावजूद अति विलक्षण प्रतिभा के धनी *अमिताभ* ने तो अपने बलबूते पर कुछ और ही करगुज़रने की ठान ली थी. स्कूली दिनों से शुरू हुआ अभिनय का शौक़ या कहें कि जुनून कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म होने के साथ-साथ और भी बढ़ता गया. हालांकि, १९६३ से १९६८ तक पाँच साल कलकत्ता में दो प्रतिष्ठित कम्पनियों में नौकरी भी की, लेकिन मन में तो कुछ और ही चल...

रावण एक दहन अनेक

"रावण एक, दहन अनेक" जी हाँ, रावण तो एक ही था. मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के हाथों मारा भी एक ही बार गया था, लेकिन अभागा शायद ये नहीं जानता था कि बरसों बाद हर एक मोहल्ले की गली-गली में, बार-बार जलाया भी जाएगा. राजनेताओं और गली-मोहल्लों की भाई गिरी और शक्तिप्रदर्शनों का और कुछ नहीं तो कम से कम एक फ़ायदा तो है कि छोटे से छोटा उत्सव-पर्व-त्यौहार भी भव्यता और तामझाम के साथ मनाया जाने लगा है.  देश के किसी भी शहर के किसी भी गली-मोहल्ले में निकल जाईये, हर साइज़ के रावण जलने को तैयार मिलेंगे. और भले ही बुराई के प्रतीक रावण के जलने की ख़ुशी हो या फिर किसी सुरुर का असर, कानों के पर्दे फाड़ते और सीने की धड़कन को झकझोरते DJ की आवाज़ पर कूल्हे न मटकाए जाएं तो फिर भला रावण जलाने का मज़ा ही क्या?  वैसे, अपनी बात करुं तो मैं आज बेहद ख़ुश हूँ. उजड़े, बंजर पड़े मेरे सम्पूर्ण क्षेत्र की तो मात्र मात्र २ दिनों में ही काया पलट हो गई है. अधिकतर अंधकार में डूबा रहने वाला क्षेत्र, पूरी तरह दूधिया रौशनी में नहा चुका है. और साफ़-सफ़ाई के तो क्या कहने, मजाल कि नेताजी को शिक़ायत का मौक़ा मिले!!...