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"हैप्पी न्यू ईयर"..

"हैप्पी न्यू ईयर" आज रात १२ बजे घड़ी की सुईयों के मिलन के साथ ही कर्णभेदी संगीत पर भौण्डे-बेहूदा नाच के बीच छलकते जामों के टकराने के साथ कहीं "हैप्पी न्यू ईयर" का जल्लोष सुनाई देगा, तो कहीं माता-पिता-बड़े-बुज़ुर्गों के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्ति और दुग्ध-मिष्ठान्न के वितरण के साथ एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई-शुभकामनाएँ-शुभाशीष का आदान-प्रदान होगा.. नववर्ष की प्रातः काल कोई होटल, फार्महाउस, अस्पताल, नाले, सड़क पर, बीती रात और रात के साथियों को कोसते तो कोई मंदिर-मस्ज़िद-गिरिजा-गुरुद्वारे में शीश नवाकर बीती ग़लतियों के लिये क्षमा माँगने के साथ ही आने वाले समय में अपने आप सेकुछ संकल्प करते तो कोई अपने, अपने परिवार और प्रियजनों के उज्जवल भविष्य के लिये योजनाएँ बनाते दिखाई देगा.... भले ही राष्ट्रीय नववर्ष स्मरण हो ना हो, उत्सव मनाएँ ना मनाएँ, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय नववर्ष मनाने में कहीं कोई चूक, कोर-कसर बाक़ी नहीं रहनी चाहिये.. बहरहाल: दुनियाँ यही है, दस्तूर यही है और जब तक ये दुनियाँ है, ये सब कुछ इसी तरह बदस्तूर जारी रहेगा.. "समस्त भारतवा...

ये करारी-प्रचण्ड हार किसकी?

ये करारी-प्रचण्ड हार किसकी? हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में कॉंग्रेस Party की न केवल करारी-प्रचण्ड हार हुई है बल्कि दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत, सुरेश पचौरी जैसे  दिग्गज कॉंग्रेसी नेताओं के राजनैतिक Career का भी अन्त हो गया है, और ये अन्त इस प्रकार हुआ है, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं होगी.  लेकिन आख़िरकार बड़ा सवाल तो ये उठता है कि दर असल ये हार कॉंग्रेस की है या घेंडी-वाड्रा 'ख़ान'दान की?  लेकिन प्रथम दृष्टया आँकलन ही कर लिया जाए तो इस सवाल का जवाब बेहद आसान है, ये हार कॉंग्रेस से ज़्यादा घेंडी-वाड्रा 'ख़ान'दान की है और संकेत बिल्कुल साफ़ हैं कि देश की जनता अब भारतीय राजनीति में घेंडी-वाड्रा 'ख़ान'दान को देखना नहीं चाहती. शायद ये बात कॉंग्रेसी भी अच्छी तरह जानते और मानते हैं लेकिन लाचारीवश बोल नहीं पा रहे क्योंकि 'रजवाड़े' के ख़िलाफ़ बोलने का नतीजा अनेक लोगों ने देखा और भुगता है. लेकिन आख़िरकार ये कब तक चलेगा? क्या कॉंग्रेस के नेता-कार्यकर्ताओं, ख़ासतौर पर युवाओं का राजनैतिक Career और भविष्य यूँ ही न केवल दाँव पर लगा रहेगा बल्कि समाप्त ही ...

"पनौती" कौन?

"पनौती" कौन? पनौती यानी मनहूस. जी हाँ, इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया था एक बिगड़ैल शहज़ादे ने, देश के यशस्वी प्रधानमन्त्री और विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति के लिये, जो ख़ुद न केवल बेहद निकम्मा-नकारा-असफल व्यक्ति है, बल्कि जिसे भारत के इतिहास-भूगोल-अर्थतन्त्र-सभ्यता-संस्कृति-रीति-रिवाजों-परम्पराओं के बारे में कुछ भी नहीं पता और यहां तक कि जिसे राष्ट्रगान भी नहीं आता.  वो चमचों-चाटुकारों-दरबारियों के बिना एक कदम नहीं चल सकता, लिख-पढ़-बोल नहीं सकता. कहने के पास उसका अपना कुछ नहीं है, सबकुछ बाप-दादी, पिता के ननिहाल का ही है. जीवन में उस व्यक्ति की अपनी कोई उपलब्धि-सफलता नहीं यहाँ तक कि उसका अपने जीवन का कोई ध्येय-लक्ष्य नहीं, बस जहाँ चाटुकार-दरबारी कह दें, वो निकल पड़ता है और जब इस पर भी कुछ हासिल न हो तो सहानुभूति की नौटंकी यानी Emotional Blackmailing शुरु कर देता है, "मेरी दादी, मेरे पिताजी......" जिन्हें क्रमशः ३९ से अधिक एवं साढ़े ३२ साल हो चुके हैं. अरे, कब तक उनके नाम पर ख़ुद को राजगद्दी सौंपे जाने की भीख़ माँगते र...

विधानसभा चुनाव २०२३, Semi Final या Final?

विधानसभा चुनाव २०२३, Semi Final या Final? यदि तमाम Exit Polls को आधार मानें तो इस बार के विधानसभा चुनाव अनेक दिग्गज नेताओं के राजनैतिक Career के अन्तिम अथवा समाप्ति के चुनाव होंगे. जिनमें मध्यप्रदेश में कॉंग्रेस से दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी तो भाजपा से कैलाश विजयवर्गीय और उमा भारती. क्योंकि यदि मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा सरकारें बनीं तो दिग्विजय, कमलनाथ, पचौरी के राजनैतिक Career का अन्त सुनिश्चित है तो दूसरी ओर कैलाश विजयवर्गीय का राजनैतिक Career भी हार की प्रबल आशंकाओं के चलते दांव पर लगा हुआ है. उमा भारती की बात की जाए तो Party के प्रति अपने नरम-गरम रवैये, चुनाव में निष्क्रीयता, केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल से निकाले जाने के चलते उनका राजनैतिक Career तो समाप्त ही माना जा सकता है. लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण एवं विचारणीय बात ये है कि पाँच राज्यों का विधानसभा चुनाव होते हुए भी ये चुनाव पूरी तरह मोदी बनाम राहुल में परिवर्तित हो चुका था और इसे मोदी बनाम राहुल बनाने में दोनों ही दलों के नेता-कार्यकर्ताओं ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी...