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क्या ध्वनि कम्पन/प्रदूषण भी अकाल, अकस्मात् मृत्यु का कारण बनता जा रहा है? यदि हाँ, तो आख़िर कैसे बचा जाए?

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  क्या ध्वनि कम्पन/प्रदूषण भी अकाल , अकस्मात् मृत्यु का कारण बनता जा रहा है ? यदि हाँ , तो आख़िर कैसे बचा जाए ? १ ६ दिसम्बर २०२२: सिवनी-मध्यप्रदेश ,  ६० वर्षीय महिला २७ फ़रवरी २०२३: शिवनी गांव-किनवट तहसील , नांदेड़ ,   १९ वर्षीय विश्वनाथ १८ जनवरी २०२३: रीवा-मध्यप्रदेश , ३२ वर्षीय अभय सचिन ०२ सितम्बर २०२२: बरेली-उत्तरप्रदेश , प्रभात २५ फ़रवरी २०२३: परदी गांव , निर्मल ज़िला , तेलंगाना ,  १९ वर्षीय मुत्यम २२ फ़रवरी २०२३: माधोगढ़ , ज़िला उरई , उत्तरप्रदेश , १६ वर्षीय गोलू १२ दिसम्बर २०२२: अल्मोड़ा , उत्तराखंड , बेटी की शादी में  पिता की मृत्यु २५ नवम्बर २०२२: मंडुआडीह , वाराणसी , ४० वर्षीय मनोज १२ नवम्बर २०२३: पाली-राजस्थान , ४२ वर्षीय अब्दुल सलीम पठान ०३ मार्च २९२३: मनिथर गांव , ज़िला सीतामढ़ी , बिहार ,  सुरेन्द्र कुमार (दूल्हा) ०७ सितम्बर २०२२: बिश्नेह , जम्मू-कश्मीर , योगेश गुप्ता   ०७ मई २०२२: ताजपुर , उज्जैन , १८ वर्षीय लालसिंह ०४ नवम्बर २०२२: मैनपुरी , उत्तरप्रदेश , रवि शर्मा (हनुमान) १९ अक्टूबर २०२१: भोपाल , डाक्टर सी ए...

Achhi Aadat Campaign (AAC) Documentary Film 2022

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क्या राहुल गाँधी भीतरघातियों की साज़िश का शिकार हुए?

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  क्या राहुल गाँधी भीतरघातियों की साज़िश का शिकार हुए? क्या राहुल गाँधी भीतरघातियों की साज़िश का शिकार हुए? यदि मुझसे ये सवाल पूछा जाता तो मैं कहता * बिल्कुल * . और मैं तर्कों और तथ्यों के साथ बड़ी आसानी से इसे साबित भी कर सकता हूँ. अब ज़रा २०१४ से लेकर आज तक: देश के ज्वलन्त मुद्दों, देश की राजनैतिक परिस्थितियों, कांग्रेस Party के कार्यकलापों एवम् महत्वपूर्ण निर्णयों पर ही नज़र डाल लें तो इन सब पर ही: ग़ुलामों, चमचों, चाटुकारों, दरबारियों द्वारा राहुल गाँधी को: उकसाया गया, भड़काया गया, बरगलाया गया, दिग्भ्रमित किया गया, बुलवाया-कहलवाया गया. और चाण्डाल चौकड़ी द्वारा उनका तमाशा बनाया गया. अब अगर मुद्दों की ही बात कर लें तो प्रमुख या ज्वलन्त मुद्दे होने चाहिये थे: भीषण महंगाई, भयावह बेरोज़गारी, डूबती अर्थ व्यवस्था, लुटे-पिटे-बेहाल अन्नदाता, बर्बाद छोटे-मझौले व्यवसायी, तबाह-बदहाल निम्न एवम् मध्यमवर्ग इत्यादि. लेकिन ज्वलन्त या प्रमुख मुद्दे क्या बनाए गए: मोदी, माल्या, चौकसी, अडाणी, कोरोना, नोटबन्दी इत्यादि. नि:सन्देह, ये भी ज़रुरी मुद्दे थे/हैं, लेकिन ये दूस...

समय बलवान या 'राज'नीति महान

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  समय बलवान या 'राज'नीति महान समय से बड़ा: दग़ाबाज़, धोख़ेबाज़, पलटीबाज़ कोई नहीं. ये आज हमारा है तो कल विरोधियों का होगा. ये किसी का भी सगा नहीं! कोई बाक़ी नहीं जिसे ठगा नहीं!! लोग लगाते हैं इससे वफ़ा की आस, भरोसे रहते हैं इसके, चाहते दग़ा नहीं!! समय ने आज फिर करवट बदली है. इतिहास ने फिर अपने आप को हूबहू दोहराया है, बस चेहरे बदले हैं, लेकिन हालात बिल्कुल वही हैं. ज़रा याद कीजिये जब १९७५ में जनता के मौलिक अधिकारों को किस तरह कुचला गया था. २००२ में एक राज्य के मुख्यमंत्री को SIT की १२-१२ सदस्यीय Team ने अपने कार्यालय में बिठाकर ९-९ घंटे की Marathon पूछताछ में किस तरह १००-१०० सवालों की झड़ी लगा दी थी. लेकिन उस इंसान ने उफ़ तक नहीं की. पूरी तरह शान्त-संयमित रहकर उस परिस्थिति का अकेले ही डटकर सामना किया और उससे बेदाग़, पाक़-साफ़ होकर निकला. उस दौरान उस इंसान ने कभी भी अपने मुख्यमंत्री होने का रुतबा नहीं झाड़ा. SIT की एक प्याला चाय तक नहीं पी. खाने का डब्बा और पानी की बोतल भी वो घर से लेकर जाता था. २०१० में उसी के सिपहसालार यानी राज्य के गृहमंत्री को निशाना बनाया गया, ...

आख़िर किसी समुदाय को दलित क्यों कहा जाता है?

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  आख़िर किसी समुदाय को दलित क्यों कहा जाता है ?   वो समुदाय: मैला ढोता है , मैला साफ़ करता है , मज़दूरी-हम्माली करता है , गटर-नालियाँ साफ़ करता है , कचरा उठाता और साफ़ करता है , सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर झाड़ू लगाता है , यानी कुल मिलाकर समाज से गन्दगी दूर कर उसे साफ़-सुथरा करता है , स्वच्छता लाता है , तो फिर वो दलित क्यों कहलाता है ?   आख़िर क्यों किसी समाज को सरकारों , नेताओं और यहाँ तक कि मीडिया द्वारा भी दलित कहकर उसे बार-बार:   पिछड़ा , निःशक्त , कमज़ोर , असहाय , दबा-कुचला , निर्बल-दुर्बल होने का आभास-एहसास कराया जाता है ? जबकि असल में तो वो सामाजिक , आर्थिक और यहाँ तक की राजनैतिक व्यवस्था-संरचना-ढाँचे की रीढ़ की हड्डी है , तभी तो चुनाव महोत्सव में बड़े से बड़े राजनेता को भी इस समाज के आगे गिड़गिड़ाते , वोटों की भीख़ माँगते देखा जा सकता है.   दर असल वास्तविकता तो ये है कि इस समाज के योगदान के बिना तो जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती.   वो कर्मयोगी समुदाय तो बलित अर्थात बलशाली या बलिष्ठ समुदाय हुआ. बार-बार उसे दलि...