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और कितनी चाहिये अभिव्यक्ति की आज़ादी?

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  तो अब ८० पार जाकर * अमिताभ बच्चन जी * को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर सन्देह हो रहा है. तो आदरणीय अमिताभजी, पैसा छापने से फ़ुर्सत मिले तो ज़रा कुछ महत्वपूर्ण बातें याद कर लें. अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ लेकर ही कुछ लोग: देशविरोधी नारे लगा  रहे हैं. सेना के शौर्य पर सवाल कर रहे हैं. नारे लगाने वालों का समर्थन कर रहे हैं. प्रदर्शन-आन्दोलन के नाम पर सड़कें और रास्ते जाम कर रहे हैं. आतंकवादी की फांसी रुकवाने आधी रात को कोर्ट खुलवा रहे हैं. पाकिस्तान ज़िन्दाबाद और ख़ालिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद प्रभु श्रीराम मन्दिर का विरोध कर रहे हैं. हास्य-व्यंग्य की आड़ में सनातन धर्म-देवी-देवताओं का घोर अपमान कर रहे हैं. एक राजनैतिक दल और उसकी सरकार के विरोध की आड़ में देश का विरोध कर रहे हैं. अफ़ज़ल-बुरहान-याक़ूब-सोहराब-इशरत समेत तमाम आतंकियों और उनके पालने वालों का समर्थन कर रहे हैं. देश के प्रधानमन्त्री तक का खुलेआम अपमान कर रहे हैं, उनके प्रति अमर्यादित भाषा और शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं, उन्हें अपशब्द कह रहे हैं और यहाँ तक कि उन्हें हट...

"धर्मेन्द्र", रोमांस के रोमियो और ऐक्शन के किंग

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  "धर्मेन्द्र" ये नाम सुनते या दिमाग़ में आते ही रौबदार, शानदार, मज़बूत शरीर वाले, सदाबहार अभिनेता का फूलों सा खिलखिलाता-मुस्कुराता चेहरा आँखों के सामने आ जाता है. १९६० में प्रदर्शित "दिल भी तेरा हम भी तेरे" से अपने अभिनय सफ़र की शुरुआत करने वाले इस जाट पुत्तर को, सिने जगत में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में ज़रा भी देर नहीं लगी. बन्दिनी, दिल ने फिर याद किया, अनपढ़, आँखें, काजल, फूल और पत्थर, देवर, सत्यकाम, अनुपमा में अपनी बेहतरीन अदाकारी से "धर्मेन्द्र" ने लोगों को अपना दीवाना बना दिया. अनुपमा में शानदार अभिनय के लिये उन्हें १४ वें राष्ट्रीय फ़िल्म फेयर पुरस्कार समारोह में स्मारिका देकर सम्मानित किया गया. उसके बाद तो उन्होंने आया सावन झूम के, मेरे हमदम मेरे दोस्त, इश्क़ पर ज़ोर नहीं, प्यार ही प्यार, जीवन मृत्यु, शिकार, ब्लैकमेल, क़ीमत, कब क्यों और कहाँ, मेरा गाँव मेरा देश जैसी सुपरहिट फ़िल्मों की झड़ी ही लगा दी. अभिनेत्रियाँ उनके साथ काम करने के लिये तो निर्माता उन्हें अपनी फ़िल्मों में लेने के लिये होड़ लगाने लगे. लेकिन इतनी आशातीत सफलता के बावजूद, स्वर्णिम दौर आना अ...

आख़िर ये धर्मान्धता क्यों? धर्म के नाम पर बेवजह ख़ून-ख़राबा ये क़त्लेआम क्यों?

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  विश्व के कुल १९५ देशों की कुल आबादी ८ अरब है और विश्व में लगभग ३०० से ज़्यादा धर्म हैं. वैश्विक स्तर पर मान्य और स्वीकार्य धर्म मात्र १२ हैं. इन १२ प्रमुख धर्मों की जनसँख्या के आँकड़ें इस प्रकार हैं: सनातन/हिन्दू धर्म:              १६% = १२८०००००००  मुस्लिम धर्म:                      २३% = १८४०००००००  ईसाई धर्म:                        ३०% = २४०००००००० सिख्ख धर्म:                        ०.३% = २४०००००० जैन धर्म:                            ०.२०% = १६०००००० पारसी धर्म:                        ०.१२५% = १०००००००  बौद्ध धर्म:            ...

जल्द से जल्द सफल राजनेता बनने के अचूक एवम् कारगर तरीक़े:

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"Career", इस विषय का ध्यान आते ही, इस पर किसी प्रकार की चर्चा शुरु होते ही या ये शब्द ज़ेहन में आते ही अभिभावकों और विद्यार्थियों के माथे पर चिन्ता की लकीरें उभर ही आती हैं. सभी अपने-अपने लक्ष्य यानी Target: IAS IPS  Actor Artist Doctor Singer Engineer Musician Sportsman/Sportswomen वगैरह को हासिल करने लिये जी-जान से जुट जाते हैं. लेकिन हम इन सबसे अलग और बिल्कुल ही हट के, आज के सबसे चर्चित क्षेत्र में Career बनाने हेतु मार्गदर्शन देने के साथ- साथ, उसे हासिल करने लिये कुछ बेहतरीन Tips भी बताएंगे. जी हाँ, आपने बिल्कुल सही पहचाना. Career बनाने के लिये सबसे आसान, चर्चित, उभरता, Powerful और Name-Fame देने वाला क्षेत्र या ज़रिया "राजनीति". तो तैयार हो जाईये और बहुत ही ध्यान से पढ़िये, ये बेहद कारगर नुस्ख़े:   सबसे पहले किसी सीधे-सादे, ईमानदार आन्दोलनकारी को अपना गुरु बनाकर, उसे अपनी सीढ़ी बनाकर, उसका पूरा इस्तेमाल करें. और जब अपना स्वार्थ अथवा राजनैतिक मक़सद पूरा हो जाए तो उसे दूध में से मख्खी की तरह निकाल फेंकें...   देश के तमाम नेताओं को भ्रष्ट करार देकर, स्वयं को को भ्रष्ट...

अमज़द ख़ान: फ़िल्मी पर्दे पर खलनायक, असल ज़िन्दगी में नायक

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साल १९७३ में, मशहूर फ़िल्मकार चेतन आनन्द की फ़िल्म हिन्दुस्तान की क़सम में पाक़िस्तानी पायलट की भूमिका से फ़िल्मी दुनियाँ में कदम रखने वाले अमज़द ख़ान, शायद ख़ुद भी नहीं जानते थे कि अगली ही फ़िल्म में धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, जया भादुड़ी जैसे दिग्गज कलाकारों के सामने होते हुए भी वो न केवल सबसे ज़्यादा सुर्खियाँ बटोरेंगे, वाहवाही लूटेंगे, बल्कि लोगों के दिलों-दिमाग़ पर ऐसा डाका डालेंगे, जिसे लोग कभी नहीं भूल पाएँगे। दिग्गज कलाकारों, शानदार अभिनय, सुमधुर गीत-संगीत, रोमांचकारी पटकथा, सधे हुए निर्देशन के अलावा यदि डायलॉग्स के चलते आज तक किसी फ़िल्म की चर्चा की जाती है और हमेशा की जाती रहेगी, तो वो है "शोले"। और ज़ाहिर है, शोले के डायलॉग्स की चर्चा होगी तो ज़ेहन में सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही नाम और चेहरा आएगा, अमज़द ख़ान का। वो ख़ूँख़ार डाकू गब्बर सिंह, जिसने अपनी पहली ही फ़िल्म में लाजवाब अदाकारी और ज़बर्दस्त संवाद अदायगी से लोगों के दिलों-दिमाग़ पर ऐसा डाका डाला, जिसकी ख़ूबसूरत सज़ा के बतौर उन्हें भरपूर नाम और शौहरत  हासिल हुई। हर डायलॉग पर ताली और हर क्रूरता पर गाली। तालियों और ग...

क्या देश में न्यायपालिका जीवित है? Is There Judiciary Still Alive In The Country?

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  दरिन्दों ने: १७ वर्षीय अनामिका का सामूहिक बलात्कार किया था। सरिये से उसकी दोनों आंखें फोड़ डाली थीं। उसके शरीर को जगह जगह सिगरेट और लोहे की गर्म सलाखों से दागा था। उसके पूरे शरीर को नुकीले, धारदार हथियारों से गोदा था। उसके गुप्तांग में कांच की बोतल घुसाकर फोड़ डाली थी। उसके चेहरे पर तेज़ाब डाला था। उन ३ नरपिशाचों/ है वानों ने है वानियत की सारी हदें पार कर डाली थीं। लेकिन  देश की तथाकथित सर्वोच्च न्यायपालिका Supreme Court द्वारा इस आधार पर दरिन्दों को रिहा कर दिया गया क्योंकि दरिन्दों के वकील की दलीलें थीं: उन में सुधार की गुंजाइश है । १० साल की सज़ा काट चुके है ं। उन में से एक मानसिक रुप से विक्षिप्त है । जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ ०९ फ़रवरी २०१२ को दिल्ली के छावला क्षेत्र सामूहिक दुष्कर्म और नृशंस हत्याकाण्ड की, जो निर्भया काण्ड से भी अत्यन्त ही वीभत्स और भयावह था. एक १७ वर्षीय मासूम-अबला के साथ दरिन्दगी, है वानियत और क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं थीं. उसके शरीर को बुरी तरह क्षत-विक्षत कर डाला था. उसे न्याय देना तो दूर, उल्टा, दरिन्दों के पक्ष में निर्णय देकर...

ऐसी भी क्या जल्दी थी हरि भाई?

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 ऐसी भी क्या जल्दी थी हरि भाई?  ६ नवम्बर १९८५ का वो दिन, Radio पर जैसे ही ये समाचार सुना कि कला जगत के चमचमाते सितारे संजीव कुमार साहब यानी कि सबके चहेते हरि भाई नहीं रहे, यक़ीनन मेरे साथ साथ समूचा देश शोकाकुल हो उठा था. मात्र ४७ वर्ष की आयु में दुनियाँ को अलविदा कहने की, ऐसी भी क्या जल्दी थी हरि भाई?  संजीव कुमार न केवल बेहतरीन कलाकार बल्कि बेहतरीन, ज़िन्दादिल, हंसमुख इंसान थे. उनके चेहरे पर हमेशा खिलखिलाते फूल की तरह, मोहक मुस्कान होती थी. १९६० में *हम हिन्दुस्तानी* की छोटी सी भूमिका से अपना फ़िल्मी सफ़र शुरु करने वाले संजीव कुमार ने अपनी ज़बरदस्त अदाकारी से अपना एक अलग ही मुक़ाम हासिल कर लिया, एक अलग ही पहचान स्थापित कर ली. शोले का रौबदार ठाकुर हो या त्रिशूल का रौबदार Businessman, फ़रार का कर्तव्यनिष्ठ पुलिस ऑफ़िसर हो या ख़ुद्दार का Judge-वकील, उनका हर अंदाज़ एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा-अजूबा था. सत्यकाम, अनोखी रात, ईमान धरम, अनामिका, उलझन,  सीता और गीता, आपकी क़सम, सिलसिला के संजीदा क़िरदार हों या अंगूर, शतरंज के खिलाड़ी, नौकर, स्वर्ग नर्क, श्रीमान श्रीमती, स्वयंवर,...

नवजीवन शुभारम्भ शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई एवम् अनन्त शुभकामनाएं पलक💐

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लगभग २५ साल पुरानी बात है, इन्दौर के डलिया गेन्द परिसर अर्थात Basketball Complex में भव्यतम "नवरात्रि-गरबा महोत्सव" आयोजित था. गरबे की एक प्रस्तुति के बाद अचानक ही अत्यन्त कर्णप्रिय, सुमधुर आवाज़ से गूँजता, बेहतरीन गीत सुनाई दिया, "सत्यम् शिवम् सुन्दरम्." समूचा परिसर एकदम शान्त हो गया, चारों ओर सन्नाटा पसर गया और हज़ारों निगाहें उस आवाज़ की खोज में इधर-उधर घूमने लगीं कि आख़िर ये सुरीली आवाज़ आ कहाँ से रही है. तभी मंच के समीप से, हाथों में Mike थामे, सफ़ेद झक्क वस्त्रों में, बेहद सुन्दर एक नन्हीं परी आती दिखाई दी. सभी हतप्रभ होकर एकटक उसे निहारते ही रह गए कि इतनी कम उम्र में, सधे हुए सुरों से सजी, इतनी सुरीली आवाज़? उस वक़्त उस नन्हीं परी की आयु मात्र ५-६ साल ही रही होगी. लेकिन उस समय कोई ये नहीं जानता था कि भविष्य में ये आवाज़, संगीत जगत में छा जाएगी और सुरों की ऐसी सुरीली छाप छोड़ेगी जो सदा के लिये संगीत प्रेमियों के मन-मस्तिष्क में घर कर जाएगी. जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ उस पलक मुछाल की जो आज संगीत जगत का चमचमाता-जगमगाता सितारा हैं. निश्चित रुप से पलक ने: कड़ी लगन, जीत-तोड़ ...

Happy Birthday 'बादशाह'

१९८८ में छोटे पर्दे यानी कि Television से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाले शाहरुख़ अपनी अदाकारी की दम पर दुनियां भर के सिनेप्रेमियों की चाहत का रुख़ अपनी ओर मोड़ लेंगे, ये तो ख़ुद शाहरुख़ ने भी शायद नहीं सोचा होगा. 'सैन्योरीटा, बड़े-बड़े देशों में छोटी-छोटी बातें तो होती रहती हैं, You Know What I Mean”, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुँह से ‘दिल वाले दुल्हनियां ले जाएँगे’ का ये Dialogue सुनकर सभी लोग उस समय ख़ुशी से आश्चर्यचकित, हतप्रभ रह गए थे, जब ओबामा जनवरी २०१५ में भारत दौरे पर आए थे. शाहरुख की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है. अमेरिका, सऊदी समेत यूरोप के अनेक देशों में भी शाहरुख़ बेहद लोकप्रिय हैं. शाहरुख़ ने अभिनय की शुरुआत १९८८ में दूरदर्शन के धारावाहिक 'फ़ौजी' से की थी उसके बाद १९८९ में आए अजीज़ मिर्ज़ा के 'Circus' और 'दूसरा केवल' में अपनी दमदार अदाकारी से लोगों के दिलों-दिमाग़ पर छा गए. फिर शाहरुख़ ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और सफ़लता के परचम देश भर में ही नहीं, विदेशों तक लहरा दिए. शाहरुख़ का प्रारम्भिक जीवन बेहद संघर्षपूर्ण रहा और स...

नियमों का पालन जनता करे, हम तो केवल वसूली करेंगे

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Signal तोड़ने, काग़ज़ात न होने, Helmet नहीं पहनने, Seat Belt नहीं लगाने, No Parking में वाहन लगाने, दुपहिया पर तीन सवारी बिठाने, ग़लती से भी One Way में चले जाने पर वसूली-वसूली-वसूली. लेकिन अंधकारमय सड़कों, घटिया-गढ्ढेदार मार्गों, घटिया-बेतरतीब Traffic व्यवस्था, आवारा पशु-मवेशियों, सड़कों के बीचों-बीच, Divider पर लगी कंटीली झाड़ियों, सड़कों पर होने वाले भारी जलभराव, सड़कों पर खुले पड़े Manhole-Gutter, इत्यादि के चलते होने वाली दुर्घटनाओं में हर साल हज़ारों घर-परिवार उजड़ जाते हैं, उसकी ज़िम्मेदारी-जवाबदेही कौन लेगा? केन्द्रीय परिवहन मन्त्रालय/विभाग, राज्य सरकार केवल लूट-खसौट के लिये ही बने हैं?