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"लता मंगेशकर एक अजर-अमर-शाश्वत नाम"

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 "लता मंगेशकर एक अजर-अमर-शाश्वत नाम"  नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा! मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे!! तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे!  जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग संग तुम भी गुनगुनाओगे!! कितनी सार्थक हैं ये पंक्तियाँ स्वर कोकिला, माँ सरस्वती का वरदान प्राप्त श्रद्धेय लता मंगेशकर जी यानी हम सबकी "लता दीदी" पर. २८ सितम्बर १९२९ को मध्यप्रदेश के इन्दौर में अवतरित लता दीदी का घरेलू माहौल पूर्णतः संगीत-कलामय ही था.  उनके पिता श्री दीनानाथ मंगेशकर रंगमंच के सुप्रसिद्ध गायक-कलाकार थे. १९४२ में पिता के निधन के बाद, मात्र तेरह वर्ष की आयु में ही लता दीदी के ऊपर तीन छोटी बहनों एवं एक छोटे भाई की ज़िम्मेदारी एवं जवाबदारी आन पड़ी, और ये बताने की ज़रूरत नहीं कि किस ख़ूबी से उन्होंने अपनी इस ज़िम्मेदारी और जवाबदारी को निभाया और अपने चारों भाई-बहनों को उनकी मंज़िल-मक़ाम तक पहुँचाया, नाम-काम-शौहरत से उनका परिचय कराया.  १९४७ में प्रदर्शित "आपकी सेवा में" लता दीदी को पार्श्व गायन का पहला अवसर मिला. बस फिर क्या था, लता दीदी ने अपनी सुरीली आवाज़ का वो जादू चलाया कि थोड़े अन्तराल ...

आख़िरकार कैसे रोका जाए बलात्कार जैसे घृणित, वीभत्स, निर्मम अपराध को?

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  १-२ साल की मासूम बच्चियों से लेकर ९१ साल की वृद्धा से दुष्कर्म की घटनाओं ने देश का दिल दहला दिया है . घर के आँगन के बाद बच्चों के लिये जिसे सबसे ज़्यादा सुरक्षित समझे जाने वाले विद्या मन्दिर , बाग़-बग़ीचे , खेत-खलिहान यहाँ तक कि मन्दिर-मस्ज़िद-मदरसे भी सुरक्षित नहीं , बल्कि यही उन मासूमों के कालस्थल बनते जा रहे हैं. पता नहीं हमारे देश में अपराध के पीछे के कारणों और अपराध को घटित होने से रोकने के उपायों से ज़्यादा सज़ा पर ही ज़ोर क्यों दिया जाता है ? Rape एक ऐसा अपराध है जो Preplanned या सुनियोजित नहीं होता बल्कि अचानक या अकस्मात् किया जाता है. कोई माने या ना माने लेकिन Rape के पीछे फ़िल्मों , TV Channels, Internet, Mobile, अश्लील साहित्य और सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ती अश्लीलता बहुत बड़े कारण हैं. इन पर गम्भीरतापूर्वक विचार और चर्चा करने की बजाए , सज़ा के प्रावधानों और तरीक़ों जैसे फाँसी , आजीवन कारावास , सार्वजनिक मृत्युदण्ड , तालिबानी सज़ा अथवा बालिग-नाबालिग , मनोरोगी इत्यादि पर ही चर्चा की जाती है . जब भी किसी महिला के साथ कोई अप्रिय घटना घटती है तो समाज के तथाकथित ठेकेदार उसके पहनावे से ल...

मुस्लिम आरक्षण की मांग: क्या समूचा विपक्ष भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की साज़िश रच रहा है

समूचे विपक्ष द्वारा, एक स्वर में, मुस्लिम आरक्षण की न केवल पुरज़ोर मांग की जा रही है, बल्कि कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी दलों ने तो अपने शासित राज्यों में तो पिछड़े वर्ग का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को दे भी डाला है, कर्नाटक इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये उठता है कि आख़िर धर्म के नाम पर आरक्षण क्यों और कैसे? इसके दो ही रास्ते हैं, बाबा साहेब अम्बेडकर जी के संविधान को बदलकर आरक्षण सीमा को पचास प्रतिशत से बढ़ाकर मुसलमानों को आरक्षण दिया जाए या बाबा साहेब की वर्तमान आरक्षण व्यवस्था को ध्वस्त करते हुए पिछड़े, आदिवासी, अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को छीनकर मुसलमानों को दे दिया जाए। लेकिन ये साज़िश मात्र यहीं ख़त्म नहीं होती। देश में मुसलमानों की तादाद बढ़ाकर भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिये समूचा विपक्ष एकजुट होकर न केवल: रोहिंग्यों बांग्लादेशियों पाकिस्तानियों को भारत में बसाने की पुरज़ोर वक़ालत कर रहा है, बल्कि अपने शासित राज्यों में भारी संख्या में बसा भी चुका है। इतना ही नहीं: CAA/NRC जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून समान नागरिक संहिता क़ानून का विरोध भी इसी भयंकर सा...

क्या भारत को मुल्लिस्तान बनाने की शुरुआत हो चुकी है?

भारत की ९९ प्रतिशत समस्याओं की जड़, दो तथाकथित स्वतन्त्रता सेनानियों द्वारा, अंग्रेज़ों की वह पर, सनातनियों के साथ: छल कपट धूर्तता मक्कारी विश्वासघात से किया गया तथाकथित बंटवारा है, जिसके तहत एक मुस्लिम देश तो बना डाला लेकिन भारत को Secular देश घोषित कर दिया। इस बंटवारे के चलते न केवल लाखों सनातनियों की ख़ून से लथपथ कटी-पिटी लाशें नापाकिस्तान से भारत आईं बल्कि आज पाकिस्तान, बांग्लादेश में रह रहे सनातनी नारकीय जीवन जीने पर मजबूर हैं। जिन तथाकथित स्वतन्त्रता सेनानियों ने हिन्दुस्तान का बंटवारा किया था, आज उन्हीं के नाजायज़ पिल्ले Vote Bank की वाहियात राजनीति के लिये, रोहिंग्यों और अवैध बांग्लादेशियों को भारत में बसाने की पुरज़ोर वक़ालत करते हुए, बचे-खुचे भारत को भी नर्क बनाने पर तुले हैं, जिन्हें तथाकथित Secular दल्लों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। यदि अब भी इन्हें कुचला नहीं गया तो समझ लीजिये, हिन्दुस्तान के मुल्लिस्तान बनने में अब ज़रा भी देर नहीं। वैसे, देश भर में अनेक स्थान मुल्लिस्तान बन चुके हैं, सनातनियों के पलायन के दौर शुरु हो चुके हैं।

"हैप्पी न्यू ईयर"..

"हैप्पी न्यू ईयर" आज रात १२ बजे घड़ी की सुईयों के मिलन के साथ ही कर्णभेदी संगीत पर भौण्डे-बेहूदा नाच के बीच छलकते जामों के टकराने के साथ कहीं "हैप्पी न्यू ईयर" का जल्लोष सुनाई देगा, तो कहीं माता-पिता-बड़े-बुज़ुर्गों के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्ति और दुग्ध-मिष्ठान्न के वितरण के साथ एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई-शुभकामनाएँ-शुभाशीष का आदान-प्रदान होगा.. नववर्ष की प्रातः काल कोई होटल, फार्महाउस, अस्पताल, नाले, सड़क पर, बीती रात और रात के साथियों को कोसते तो कोई मंदिर-मस्ज़िद-गिरिजा-गुरुद्वारे में शीश नवाकर बीती ग़लतियों के लिये क्षमा माँगने के साथ ही आने वाले समय में अपने आप सेकुछ संकल्प करते तो कोई अपने, अपने परिवार और प्रियजनों के उज्जवल भविष्य के लिये योजनाएँ बनाते दिखाई देगा.... भले ही राष्ट्रीय नववर्ष स्मरण हो ना हो, उत्सव मनाएँ ना मनाएँ, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय नववर्ष मनाने में कहीं कोई चूक, कोर-कसर बाक़ी नहीं रहनी चाहिये.. बहरहाल: दुनियाँ यही है, दस्तूर यही है और जब तक ये दुनियाँ है, ये सब कुछ इसी तरह बदस्तूर जारी रहेगा.. "समस्त भारतवा...

ये करारी-प्रचण्ड हार किसकी?

ये करारी-प्रचण्ड हार किसकी? हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में कॉंग्रेस Party की न केवल करारी-प्रचण्ड हार हुई है बल्कि दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत, सुरेश पचौरी जैसे  दिग्गज कॉंग्रेसी नेताओं के राजनैतिक Career का भी अन्त हो गया है, और ये अन्त इस प्रकार हुआ है, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं होगी.  लेकिन आख़िरकार बड़ा सवाल तो ये उठता है कि दर असल ये हार कॉंग्रेस की है या घेंडी-वाड्रा 'ख़ान'दान की?  लेकिन प्रथम दृष्टया आँकलन ही कर लिया जाए तो इस सवाल का जवाब बेहद आसान है, ये हार कॉंग्रेस से ज़्यादा घेंडी-वाड्रा 'ख़ान'दान की है और संकेत बिल्कुल साफ़ हैं कि देश की जनता अब भारतीय राजनीति में घेंडी-वाड्रा 'ख़ान'दान को देखना नहीं चाहती. शायद ये बात कॉंग्रेसी भी अच्छी तरह जानते और मानते हैं लेकिन लाचारीवश बोल नहीं पा रहे क्योंकि 'रजवाड़े' के ख़िलाफ़ बोलने का नतीजा अनेक लोगों ने देखा और भुगता है. लेकिन आख़िरकार ये कब तक चलेगा? क्या कॉंग्रेस के नेता-कार्यकर्ताओं, ख़ासतौर पर युवाओं का राजनैतिक Career और भविष्य यूँ ही न केवल दाँव पर लगा रहेगा बल्कि समाप्त ही ...

"पनौती" कौन?

"पनौती" कौन? पनौती यानी मनहूस. जी हाँ, इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया था एक बिगड़ैल शहज़ादे ने, देश के यशस्वी प्रधानमन्त्री और विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति के लिये, जो ख़ुद न केवल बेहद निकम्मा-नकारा-असफल व्यक्ति है, बल्कि जिसे भारत के इतिहास-भूगोल-अर्थतन्त्र-सभ्यता-संस्कृति-रीति-रिवाजों-परम्पराओं के बारे में कुछ भी नहीं पता और यहां तक कि जिसे राष्ट्रगान भी नहीं आता.  वो चमचों-चाटुकारों-दरबारियों के बिना एक कदम नहीं चल सकता, लिख-पढ़-बोल नहीं सकता. कहने के पास उसका अपना कुछ नहीं है, सबकुछ बाप-दादी, पिता के ननिहाल का ही है. जीवन में उस व्यक्ति की अपनी कोई उपलब्धि-सफलता नहीं यहाँ तक कि उसका अपने जीवन का कोई ध्येय-लक्ष्य नहीं, बस जहाँ चाटुकार-दरबारी कह दें, वो निकल पड़ता है और जब इस पर भी कुछ हासिल न हो तो सहानुभूति की नौटंकी यानी Emotional Blackmailing शुरु कर देता है, "मेरी दादी, मेरे पिताजी......" जिन्हें क्रमशः ३९ से अधिक एवं साढ़े ३२ साल हो चुके हैं. अरे, कब तक उनके नाम पर ख़ुद को राजगद्दी सौंपे जाने की भीख़ माँगते र...

विधानसभा चुनाव २०२३, Semi Final या Final?

विधानसभा चुनाव २०२३, Semi Final या Final? यदि तमाम Exit Polls को आधार मानें तो इस बार के विधानसभा चुनाव अनेक दिग्गज नेताओं के राजनैतिक Career के अन्तिम अथवा समाप्ति के चुनाव होंगे. जिनमें मध्यप्रदेश में कॉंग्रेस से दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी तो भाजपा से कैलाश विजयवर्गीय और उमा भारती. क्योंकि यदि मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा सरकारें बनीं तो दिग्विजय, कमलनाथ, पचौरी के राजनैतिक Career का अन्त सुनिश्चित है तो दूसरी ओर कैलाश विजयवर्गीय का राजनैतिक Career भी हार की प्रबल आशंकाओं के चलते दांव पर लगा हुआ है. उमा भारती की बात की जाए तो Party के प्रति अपने नरम-गरम रवैये, चुनाव में निष्क्रीयता, केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल से निकाले जाने के चलते उनका राजनैतिक Career तो समाप्त ही माना जा सकता है. लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण एवं विचारणीय बात ये है कि पाँच राज्यों का विधानसभा चुनाव होते हुए भी ये चुनाव पूरी तरह मोदी बनाम राहुल में परिवर्तित हो चुका था और इसे मोदी बनाम राहुल बनाने में दोनों ही दलों के नेता-कार्यकर्ताओं ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी...

लोकतन्त्र उत्सव-मध्यप्रदेश

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                                                          लोकतन्त्र उत्सव-मध्यप्रदेश आगामी १७ नवम्बर को हम सभी को लोकतन्त्र महोत्सव की अनिवार्य परम्परा का निर्वहन अर्थात मतदान करना है. स्वच्छ, स्वस्थ लोकतन्त्र की स्थापना का सबसे अनिवार्य तत्व है "आदर्श आचार संहिता". तो आईये, मिलकर संकल्प लें कि हम न केवल स्वयं "आदर्श आचार संहिता" का पूर्ण परिपालन करेंगे वरन दूसरों को भी इसका पालन करने हेतु प्रेरित-प्रोत्साहित करेंगे.  इसके लिये सबसे पहले हमें "आदर्श आचार संहिता" के मूलभूत सिद्धान्तों एवं तत्वों का पूर्ण ज्ञान होना अत्यन्त अनिवार्य है.  १.  शासकीय भवन-कार्यालय-मन्त्रालय-विद्या लय-महाविद्यालय-विश्वविद्यालय- चिकित्सालय एवं अन्य किसी भी प्रकार की शासकीय सम्पत्ति पर किसी भी प्रकार की प्रचार सामग्री जैसे: पर्चे, बैनर, झण्डे,  पेंटिंग,  पोस्टर, होर्डिंग, फ़्लैक्स इत्यादि न लगाना तथा किसी के द्वारा ऐसा करते पाए जाने पर तत्...